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बहुत मारक कथा बनी है , प्रदत्त विषय को सम्पूर्ण सार्थक करती हुई ,बधाई आपको नीता जी
वाह्ह बहुत बढ़िया लघु कथा नीता जी ,दिल से बधाई लीजिये
बहुत बढ़िया रचना कही है आदरणीया नीता सैनी जी, समय सब कुछ सिखला देता है और जो कुछ पहले बुरा लगता था वो ही अच्छा और सार्थक लगने लगता है| बेहतरीन तंज के साथ कही रचना हेतु बधाई स्वीकार करें आ० नीता सैनी जी |
्समय समय का फेर समझाती सुन्दर लघुकथा आ. नीता जी, बधाई स्वीकार करें
हार्दिक बधाई आदरणीय नीता जी, बेहद खूबसूरत लघुकथा बन गई!
"प्रश्न रिश्तों के"' (विषय:प्रत्युत्तर)
"क्या बात है स्वाती आज कल रोज ऑफिस से देर घर आती हो ?" पति ने नाराजगी भरे स्वर में कहा।
"बॉस के साथ क्लाइंट के घर प्रोजेक्ट पर डिस्कशन के लिए जाना पड़ता है।"
"घर के बदले होटल में भी कभी कभी डिस्कशन होता होगा।"
"हा ऐसा भी होता है।"
"फिर तो बॉस के बिना भी क्लाइंट के साथ होटल में जाना होता होगा।"
"हा बॉस कहे तो जाना भी पड़ता है।"
"कभी कभी क्लाइंट के साथ पब्लिक पार्क में भी डिस्कशन होता होगा।"
"आप कहना क्या चाहते है ?"
"मेरे हर सवाल का तुम्हारे पास प्रत्युत्तर है फिर इस प्रश्न का क्यों नही ?" पति ने अपने मोबाईल फ़ोन में चित्र दिखाते हुए कहा।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
ऐसे सवालों का जवाब नहीं होता , बहुत बढ़िया रचना , बहुत बहुत बधाई.
हार्दिक बधाई आदरणीय मदनलाल जी,बातों बातों में ही बेहद खूबसूरत लघुकथा बन गई!
संवाद शैली में अच्छी लघुकथा कही है आ० मदनलाल श्रीमाली जी, हार्दिक बधाई स्वीकारें !
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