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तहे दिल से आभार आदरणीय अर्चना त्रिपाठी जी
हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी
बढ़िया लिखी आपने कथा ...ऐसी गूढ़ बात विदेशी को समझ भी न आई हो शायद ..बधाई आपको
क्या खूब कह दिया आपने रजनी जी, मिट्टी से ही बने हैं और मिट्टी में ही मिल जायेंगे चाहे वो भगवान ही क्यों न हों| जैसे प्रतीकों के माध्यम से भी लघुकथा बनती है वैसे ही मूर्ती के माध्यम से गुणों को जाना जाता है| इस अद्भुत रचना हेतु बधाई स्वीकार करें|
बहुत खूब सनातन सत्य का वर्णन करती लघुकथा आ. रजनी जी बधाई आपको।
आदरणीया रानी गोसाईं जी, आपकी लघुकथा का मर्म मुग्ध कर गया. हार्दिक शुभकामनाएँ
Janki wahie जी
३. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है।
हार्दिक बधाई आदरणीय रजनी जी!अच्छी लघुकथा हुई है!बहुत गंभीर और आत्मिक ज्ञान देती लघुकथा!
हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी
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