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आ0 कांता बहन , बहुत सशक्त लघुकथा हुई है , हार्दिक बधाई l
दुबारा पढ़ रहें ..पता नहीं पहले कमेन्ट किया या नहीं | अनहोनी भापने की गजब की शक्ति होती महिलाओं के पास | भगवान ने सब गुर के साथ ये गुण भ दे रखे हैं जिसके उपयोग से भेडियो से वह अपने आप को सुरक्षित करने का कवच तैयार कर ही लेती हैं ..बढ़िया कथा दी
आदरणीया कान्ताजी, ऐसी लघुकथाएँ लघुकथाओं के व्यवहार को प्रभावित करती हैं. आपने तो वाकई खुश कर दिया.
जब कमरे में बैठे पात्रों की आवाज़ हजक़ में रह गयी तो पाठकों की धड़कनों को कितना आराम पहुँचा, आपको भी अहसास होगा. वर्ना हमारे आस-पास ऐसे रचनाकारों की कमी नहीं जो जाने-बूझे ट्रैक पर भदेसपन मचा देते हैं हैं यथार्थ के नाम पर !
इस सकारात्मकता केलिए दिल की गहराइयों से शुभकामनाएँ आदरणीया.
आपको इस रचना के लिए बहुत बधाई आदरणीय कांता रॉय जी
कथा पसंदगी के लिए तहे दिल आभार आपको आदरणीया मीना जी।
आदरणीय सुनील जी ,अच्छा लगा जानकार की आपको ये कथा पसंद आई। सच कहूँ तो मेरा मनोबल आपने बढा दिया। आभार हृदयतल से आपको।
क्वीन
गहराती रात अपने विषैले नुकीले पंजे सुधा के मानस पर हताशा और हार के रूप में जड़े जमाने लगी थी . स्वप्निल भविष्य की उमीदों से झिलमिलाती आँखे और पोर पोर में दौड़ती फुर्ती की घर में बिछ गए बिसात पर आये दिन बुनते षड्यंत्रों से प्रतिस्पर्द्धा चल रही थी . बिन माँ की युवा होती नन्ही सुधा की हैसियत घर में शतरंज के पैदल सिपाही सी थी जिसे सुरक्षा के नाम पर जब चाहे कुर्बान किया जा सकता है .उसकी पढाई और शादी के खर्च को उठाने में भाइयों ने अपनी असमर्थता जाहिर कर ही दिया था .सुधा नामक "बोझ" को उठाने हेतु बिसात की सारे मोहरें बेधड़क अपनी चालें चल रहें थें. बड़ी भाभी पढाई छुडवा घर के काम सीखने( कराने) तो मंझली अपने चालीस पार तलाकशुदा भाई के घर बसाने को तत्पर थी तो वहीँ छोटी भाभी निर्लिप्त भाव अख्तियार कियें थीं. और पापा ,वो तो शतरंज की राजा की ही तरह महवपूर्ण होते हुए भी बेहद बेबस और कमजोर थें .भाइयों की उच्च शिक्षा और शादी में लगभग रिक्त हो चुका पिता ,बेटी को लिए ,चौतरफे हमलें से बचने हेतु कभी सफ़ेद तो कभी काले घर पर बचते- बचाते पसीने पसीने हो रहा था . आज तो छोटी भाभी ने भी मुहं खोल ही दिया,कि वे लोग दो व्यक्तियों का बोझ नहीं उठा सकतें .
अंतहीन रात की सुबह को तरसती सुधा अचानक चौंक गयी जब पापा ने एक दस्तावेज उसके हाथ में देते हुए कहा ,
"सुधा मैंने अपना ये घर तुम्हारे नाम कर दिया है ,अब तुम मालिक हो इस घर की और अपने जीवन की "
अचानक प्यादा ताकतवर हो क्वीन में बदल गया ,इतना कि उसे मंत्री या वजीर न कह "रानी "कहना ज्यादा उचित होगा .
(मौलिक व् अप्रकाशित)
आदरणीया रीता जी प्रदत्त विषय पर बढ़िया लघुकथा हुई है. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. लघुकथा पर पुनः आता हूँ. सादर
धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश जी ,आपकी विस्तृत टिप्पणी वांछनीय है .
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