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बहुत दुखद है यह की अपनी तरक्की के लिए इस तरह के हथकंडे अपनाते हैं कुछ लोग किन्तु स्त्री में यदि स्वाभिमान है तो पति और बॉस दोनों को मजा चखा सकती है बहुत अच्छी कहानी बधाई आपको .
आदरणीया नयना (आरती)जी, लघुकथा पर आपका प्रयास बना रहे. कई बातें हैं जो कथ्य को अतार्किक बना रहे हैं. सरिता क्या इतनी भोली थी जो तैयार होते ही समझ नहीम् रही थी ? या सुधीर बिना पूरी तरह उसे कॉन्फ़िडेंश में लिये इतना बड़ा निर्णय ले बैठता है ?
खैर, आपका मंच पर बन रहना कई तरह से लाभान्वित करेगा, यह अवश्य है.
सादर
बहूत बहूत शुक्रिया राहिला जी रचना सराहने के लिये
हार्दिक बधाई आदरणीय नयना जी!सुंदर लघुकथा !आपकी लघुकथायें अच्छी होने के साथ कुछ व्याकरण की त्रुटियों से भी युक्त होती हैं जो लघुकथा की रोचकता को प्रभावित करता है!जैसे -१."हमारी खुबसुरत सखी सी सरिता" की जगह "हमारी खूबसूरत सी सखी सरिता" होना चाहिये!२.तुम पिछे क्यों "पीछे"! ३. चिख पडी-"चीख"!अंत में "सुधीर" को सुधिर लिखा गया है!आपने कई जगह फ़ुल स्टॉप की जगह डॉट लगाया है जो कि अंग्रेजी में प्रयोग होता है!सुझावों को अन्यथा ना लें!
ह्रुदयतल से धन्यवाद तेजवीर सिंग जी ! इतनी बारीकि से रचना पढकर सुझाव देने के लिये !आपकी बाते ध्यान रखूँगी.
देहाती शतरंज़ - ( लघुकथा ) –
हरिजन हरी राम के खेत में गॉव के दबंग सरपंच और धर्म कर्म के प्रकांड पंडित ज़टा शंकर गौतम जी की चार गायें घुस गयीं!उसका मन तो किया कि लेके लाठी, दे दना दन, भगा दे गायों को!मगर उसने सोचा कि अगर किसी ने देख लिया और सर पंच को बता दिया तो उसे कितने लाठी पडेंगी, भगवान ही जाने!यही सोच कर वह डर गया!
मगर गायें उसकी फ़सल खाये जा रहीं थी !उसकी आत्मा दुख पा रही थी!करे तो क्या करे!दिमाग काम नहीं कर रहा था!
फ़िर अचानक वह सरपंच की हवेली की ओर दौड पडा!"माई बाप, गज़ब हो गया"!
सरपंच गुर्राया,"क्या हो गया रे हरिया"!
"मालिक ,आपकी गायें मेरे खेत में घुस गयीं"!
"अबे तो क्या आफ़त आगयी, दो चार पौधे ही तो खा जायेंगी, तुझे पुण्य मिलेगा "!
"माई बाप ,बात, दो चार पौधों की नहीं है, मेरा तो पूरा खेत ही आपका है"!
"तो फ़िर और क्या मुसीबत है"!
"मालिक बात थोडी गंभीर और धर्म कर्म से जुडी है "!
"साफ़ साफ़ बोलना, क्या कहना चाहता है "!
"हज़ूर, आपकी गायें एक अछूत हरिजन के खेत का चारा खायेंगी!फ़िर वे जो दूध देंगी, वह आपका परिवार पीयेगा! आप तो महर्षि गौतम के वंशज हो, साथ ही गॉव के सरपंच भी हो!मेरे विचार से आपका धर्म खराब हो सकता है! और अपने गॉव में ऐसी बातें बडी तेज़ी से फ़ैलती हैं !बाकी तो आप खुद भी समझदार हो"!
सरपंच ने हरिराम को लाठी देते हुए कहा,"अबे जल्दी जा और कोई देखे उससे पहले गायों को हांक कर ले आ "!
मौलिक व अप्रकाशित
हार्दिक आभार आदरणीय कल्पना जी!
हा हा हा ............ शानदार.......... अद्भुत
आदरणीय तेजवीर सिंह जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत शानदार लघुकथा लिखी है. शीर्षक भी लाजवाब दिया है. लघुकथा पढ़कर दिल खुश हो गया. इस प्रस्तुति पर आपको बहुत बहुत बधाई
हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी!आपके ठहाके यह प्रमाणित कर रहे हैं कि आपको लघुकथा ने भरपूर आनंदित किया है!
आदरणीय तेजवीर सिंह जी मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार आपका
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