जवन चलीं हम नीक बा, तहरे बाउर चाल ! [बाउर - ग़लत
राजनीति के खेल में, कूल्हि पैंतरा गाल !! [गाल - बेईमानी
बात-बात में फर्क बा, बतिया लीहऽ मान !
एक बढ़ावसु संत जी, दोसर के शैतान ॥
अइले रैली देखि के, अइसन चढ़ल बतास ! [बतास - हवा
उड़त रहल मन रात भर, आङन भइल अकास ॥ [अकास - आकाश
जेहि अघाइल लोग बा, उनके हऽ उतजोग । [अघाइल - संतृप्त, अतिसंतुष्ट
लोकतंत्र के नाँव पर, शासन-सत्ता भोग ॥
कवन भरोसा का करीं, काहें मति के फेर ?
चलीं उठाईं आसनी, गइल चुनावी टेर !! [आसनी - बैठकी का आसन या पीढ़ा
कवन समै आइल कहऽ, भइल सोच में भेद । [समै - समय
सभके सजल परात में, लउक रहल बा छेद ॥ [परात - विशेष रूप से बड़ी थाली
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(मौलिक आ अप्रकाशित)
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बहुत अच्छी दोहावली है बहुत बहुत बधाई |
सादर
भोजपुरी दोहों को पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्याम नारायण जी.
रचना को अनुमोदित करने केलिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सतविन्दरजी.
दोहा के कारण से मन इतना प्रसन्न हो गइल कि चुनाव के हरासी त खत्म हो गइल । दोहा के खातिर अनेक गो बधाई स्वीकार करी।
आदरणीय इन्द्रविद्यावाचस्पति तिवारीजी, रउआ हई दोहा छन्द रुचकर लगलन सऽ, हम नत-मस्तक बानीं. नेह-छोह बनल रहो,
दिल से शुक्रिया कहि रहल बानीं.
आदरणीय पाण्डेय जी, चुनाव को लेकर ये व्यंग्यात्मक दोहे मर्म पर उँगली रख रख रहे हैं --"सभके सजल परात में, लउक रहल बा छेद ॥" ...हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
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