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आदरणीय सविता जी,लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई कबूल करें
आभार आपका आदरणीय | सादर अभिवादन स्वविकार कर अपना आशीष प्रदान करें
काहे आबे में देर करी देत हो हर बार ? देखे रहे हम नाम आपका लेटेस्ट एक्टिविटी में , तो मन में एक जबरदस्त उत्कंठा जाग गयी कि देखू तो इतने देर में हमारी सविता बहिनी का रचि - रचि लाइ है ?
देखि तो अवाक होइ गयी का जबरदस्त लघुकथा छान लाइ हो जी , बहुत खूब लेखन हुआ है इस बार का।
"बेटा गिरा दो अंजुली का जल | तुम परशुराम भले बन जाओ पर मैं जन्मदग्नी नहीं बन सकता |"---- ई जो पंच का भाव इतना सार्थक सन्देश रोपित कर गया कि क्या कहें हम ! चकित है।
मानवता के मूल्यों पर ऐसे संकल्पों का तिलांजलि बेहद जरूरी है। बहुत -बहुत बधाई आपको।
कबूल अब फरमाय लीजिये , ईब संकोच न करी के। हक़ बनत है तोहार ई पर बहिनी। हा हा हा हा
ह्ह्हह्ह्ह्ह दिदिया इ कुछ ज्यादय बोलू बड़ाई तनिक कम करा ..का पता कल फेर घटिया कौनव लिखी लेई आई ..ह ह्ह्ह्हह ...कुछ छाना वाना नाही बस कलम घुमत गई हम घुमावत गए | मेहनती हम होई जाबय लिखय में तब होई गा फेर | हा हा उ प्रभाकर भैया का कहत हिन् हमरे बारे में जल्दबाजी हम्मार आदत में शुमार बा |
आभार दिदिया ..सादर अभिवादन के साथ |
किबोर्ड सही से चलत नाही बा यह खातिर देर भ लिखय में |
हा हा हा हा ...... बहुत खूब रही ये भी ! :)))))
सुंदर कथा का चुनाव है ,शब्दों का चुनाव भी बढ़िया है ,आ.savitamishra जी ,पंचलाइन दमदार है |
ढेरो बधाई |
दिल से आभार भाई आपका
प्रदत्त विषय पर बढ़िया रचना , पंच लाइन अच्छी है | बधाई इस रचना के लिए
दिल से आभार आपका | सादर अभिवादन
दिल से आभार आपका | सादर अभिवादन दी
बहुत ही बढ़िया संवाद और अंत भी बहुत अच्छा, एक पिता कभी अपने पुत्र को बर्बादी की राह पर नहीं चलने देगा| इस लघुकथा हेतु कृपया सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीया सविता मिश्रा जी|
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