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अनीता जी सुंदर भाव समेटे सुंदर प्रस्तुति . कर्तव्य वेदी पर आभूषणों के मोह की तिलांजलि .वाह .
बहुत बेहतरीन रचना , प्रतीकों के माध्यम से बढ़िया कथानक चुना है आपने | बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिए
अच्छी कथा के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीया अनीता जी ,इस मंच पर सुधीजनों के मार्गदर्शन से आपका रचना कर्म और भी निखर आएगा ,शुभकामनाएँ
हार्दिक बधाई आदरणीय अनिता जैन जी !एक बेहतरीन विषय और उतना ही सशक्त प्रस्तुतीकरण!
" आकांक्षा और महत्वाकांक्षा " ( लघुकथा )
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राम लाल बहुत बार मजाक करता है ” साहब, आप कहें तो गाड़ी के ब्रेक हटवा ही दें। “
साहब अच्छे मूड में होते हैं तो गाड़ी की खिड़की से पान की पीक थूक कर एक भरपूर ठहाका लगाते हैं और एक आंख दबा कर कहते हैं ” हट स्साला। “
दर असल राम लाल को ब्रेक पर पांव रखने की जरूरत ही नहीं पड़ती। दबंग अफसर का ड्राइवर होने के यही तो मज़े हैं कि अधिकार न होने के बावज़ूद गाड़ी पर लाल बत्ती लगी रहती है और हूटर लगातार हांऊ-हांऊ करता रहता है। नतीज़ा, दूर से ही सड़क खाली होने लगती है। एकाध बेवकूफ आगे अड़ा भी रहे तो राम लाल को बस इतना करना होता है कि ओवरटेक करके गाड़ी उसके आगे अड़ा दे। नीचे उतर कर उसको झापड़ जड़ने का काम साहब का।
आज भी वही हुआ। राम लाल ने साईकिल वाले के आगे अड़ा कर गाड़ी को जोर से ब्रेक मार दिए थे। बाप-बेटा गिरते-गिरते बचे, बेचारे। लेकिन जब उन्होने लाल-पीले हुए साहब को अपनी तरफ आते देखा तो क्रोध भूल कर बुरी तरह सहम गए, दोनो।
साहब के कुछ बोलने से पहले ही गरीब आदमी सफाई देने के लिए कैरियर पर कंबल ओढे बेटे की तरफ इशारा करके गिड़गिड़ाने लगा “ साहब, गलती से बीच सड़क आ गया क्योंकि मेरा ध्यान इस बीमार बेटे में था। “
अफसर दहाड़ा “ जबकि मेरा ध्यान पूरे देश की जनता पर था, समझे ?“
गरीब ने हाथ जोड़े “ साहब, अपने बेटे को बचाने के बारे में सोच रहा था...“
अफसर ने थप्पड़ जड़ने को आदतन हाथ उठाया और दहाड़ा था “ और मैं क्या देश को खाने कीे... “
कहते-कहते वाक्य अधूरा रह गया और अफसर का हाथ अचानक ही ढीला पड़ गया। फिर वह थके कदमों से चल कर गाड़ी में जा बैठा। राम लाल ने भी बिन कुछ बोले गाड़ी आगे बढा दी।
ड्राइवर है तो क्या हुआ ? इतना तो वह भी समझता है कि इस घटना के बाद साहब का चेहरा लटका हुआ क्यों है।
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( मौलिक तथा अप्रकाशित )
त्वरित एवं विस्तृत टिप्पणी के लिए आभार कांता जी। इंतज़ार कीजिए कोई न कोई पाठक टिप्पणी करके बता देगा कि आज साहब का चेहरा क्यों लटका हुआ है। बता तो मैं भी दूँ आदरणीया मगर , लेखक अपने कहे का सरलार्थ करने लगता है तो उसका लेखन व्यर्थ हो जाता है। डा हरिवंश राय बच्चन जो भी पुस्तक पढ़ते थे उसका प्राक्क्थन नही पढ़ते थे। कारण ? अगर लेखक कविता की बजाए अपनी बात भूमिका में लिखेगा तो कविता लिख ही क्यों रहा है ? रचना एक बार फिर पढ़ेंगी ? साहब का वाक्य अधूरा क्यों रह गया , वही एक वाक्य ही तो लघुकथा है पूरी। बाकी तो बतकूचन है
आदरणीया , अगर समय हो तो सब विद्वान पाठकों की मेरी रचना पर टिप्पणियाँ आप एक बार पढ़ कर प्रतिक्रिया दें। समय नहीं है तो कोई बात नहीं।
सब विद्वानो की टिप्पणी को पढ़कर भी ये कुछ बातें रह ही गयी आदरणीय प्रदीप नील जी। जरा गौर फरमाइयेगा। ----------
//राम लाल बहुत बार मजाक करता है ” साहब, आप कहें तो गाड़ी के ब्रेक हटवा ही दें। “
साहब अच्छे मूड में होते हैं तो गाड़ी की खिड़की से पान की पीक थूक कर एक भरपूर ठहाका लगाते हैं और एक आंख दबा कर कहते हैं ” हट स्साला। “
दर असल राम लाल को ब्रेक पर पांव रखने की जरूरत ही नहीं पड़ती। // -----यहां तक कथा बिलकुल सही बनी गयी है।
//दबंग अफसर का ड्राइवर होने के यही तो मज़े हैं कि अधिकार न होने के बावज़ूद गाड़ी पर लाल बत्ती लगी रहती है //-------यहां पात्र एक दबंग अफसर है जिसे गाडी पर लाल बत्ती का अधिकार भी नहीं है।
//और हूटर लगातार हांऊ-हांऊ करता रहता है। नतीज़ा, दूर से ही सड़क खाली होने लगती है। एकाध बेवकूफ आगे अड़ा भी रहे तो राम लाल को बस इतना करना होता है कि ओवरटेक करके गाड़ी उसके आगे अड़ा दे। नीचे उतर कर उसको झापड़ जड़ने का काम साहब का। //-------- अफसरी में गुंडा -गर्दी करना और कुछ नहीं।
//आज भी वही हुआ। राम लाल ने साईकिल वाले के आगे अड़ा कर गाड़ी को जोर से ब्रेक मार दिए थे। बाप-बेटा गिरते-गिरते बचे, बेचारे। लेकिन जब उन्होने लाल-पीले हुए साहब को अपनी तरफ आते देखा तो क्रोध भूल कर बुरी तरह सहम गए, दोनो। //------- यहां भी कथा सही प्रवाह में है।
//साहब के कुछ बोलने से पहले ही गरीब आदमी सफाई देने के लिए कैरियर पर कंबल ओढे बेटे की तरफ इशारा करके गिड़गिड़ाने लगा “ साहब, गलती से बीच सड़क आ गया क्योंकि मेरा ध्यान इस बीमार बेटे में था। “//--------- गरीब ने दबग के हाथों शिकस्तगी कबूल की। यहां भी भाव स्पष्ट है कथा के।
//अफसर दहाड़ा “ जबकि मेरा ध्यान पूरे देश की जनता पर था, समझे ?“//--------- यहां अफसर दहाड़ा , लेकिन क्यों ? ये कौन सा चरित्र रोपित हुआ है देश की चिंता करने वाला....... ? जबकि इस अफसर को गाडी में लाल बत्ती लगाने की पात्रता नहीं थी।
//गरीब ने हाथ जोड़े “ साहब, अपने बेटे को बचाने के बारे में सोच रहा था...“//-----यहां भी पंक्ति सही है ,क्यूंकि गरीब को क्या मालूम की ये किस प्रकार का अफसर है ?
//अफसर ने थप्पड़ जड़ने को आदतन हाथ उठाया और दहाड़ा था “ और मैं क्या देश को खाने कीे... “// ----------यहां पर आपकी कथा अपने कथ्य से भटक गयी है आदरणीय प्रदीप नील जी। "देश को खाने की········· " यहां इस पंक्ति का अभिप्राय क्या है स्पष्ट कीजिये जरा। वह तो उस गरीब के बीमार बेटे की शक्ल भी नहीं देखता है।
//कहते-कहते वाक्य अधूरा रह गया और अफसर का हाथ अचानक ही ढीला पड़ गया। फिर वह थके कदमों से चल कर गाड़ी में जा बैठा। राम लाल ने भी बिन कुछ बोले गाड़ी आगे बढा दी।
ड्राइवर है तो क्या हुआ ? इतना तो वह भी समझता है कि इस घटना के बाद साहब का चेहरा लटका हुआ क्यों है।//--------क्या है इस पंच का मतलब ,आप स्पष्ट कीजियेगा ताकि हम सबको कथा के आकलन करने के सही दृष्टिकोणों का तरीका भी मालूम पड़े। विनम्र निवेदन है ये। सादर।
आदरणीया कांता जी , इतनी लंबी टिप्पणी के लिए आभार . इस अकिंचन के लिए आपने इतना समय लगाया .
सबकी टिप्पणी पढने के बाद भी आप नहीं समझ पाई तो खुद समेत उन सब विद्वत जन की तरफ से भी क्षमा मांगता हूं
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