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जाति पांति के भेदभाव पर सार्थक कटाक्ष करती लघु कथा हमारे देश की ये सबसे बड़ी विडंबना है जो प्रगति विकास शीलता में भी बाधक है एक सन्देश परक प्रस्तुति हेतु बधाई आ० बेगोवाल जी
हार्दिक बधाई आदरणीय मोहन जी ! बहुत अच्छी और समयानुकूल लघुकथा है!जाति पांति का दानव, कितनी भी ऊंची पदवी प्राप्त कर लो, कभी ना कभी दंश मार ही देता है!बेहतरीन प्रस्तुति!
जाति पाती के दर्द को बढ़िया तरीके से व्यक्त करने का प्रयास किया है आपने , बधाई आपको
लड़की होने के नाते माँ बाप का एक ही फ़र्ज़ कि वक्त पर शादी हो जाए , बेहद दुखद !
क्या स्त्री जीवन का पर्याय शादी ही है ? क्या उसको एक स्वतंत्र व्यक्तित्व का आयाम नहीं मिलना चाहिए ? एक तीक्ष्ण टीस देती ,बहुत खूब प्रस्तुति हुई है आपकी आदरणीया शान्ति जी।
सफलता पूर्वक आपकी इस गोष्ठी में प्रथम दस्तक का हृदयतल से स्वागत है।
आपके शब्दों से उत्साहवर्धन हुआ है आदरणीय कांता जी
ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय
हार्दिक धन्यवाद शेख उस्मानी साहब
हार्दिक आभार नीता कसार जी
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