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हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ विजय शंकर जी!आपने आधुनिक राजनीति में पसरे हुए वंश वाद पर बेहतरीन कटाक्ष किया है!लघुकथा का उद्देश्य सफ़ल हो गया!नेताजी की आकांक्षा भी पूर्ण हो गयी!शानदार रचना!
हाहाहा बहुत कमाल की व्यंगात्मक प्रस्तुति ,,ये नेता तो भगवान के पास जाकर फिर से उसी आकाँक्षा के साथ नव जन्म लेने की प्रार्थना करते होंगे| बहुत बहुत बधाई इस मजेदार रचना पर आ० डॉ० विजय शंकर जी .
यही तो है अंतिम इच्छा आज कल के नेताओं की , बहुत सटीक रचना प्रदत्त विषय पर | बहुत बहुत बधाई आपको आ
नेताओं का अच्छा कच्चा चिट्टा खोला है आपने आदरणीय विजय शंकर जी हार्दिक बधाई इस रचना पर
सच कहा आपने कथा के माध्यम से .हमारी राजनीति का सच यही है... कई चेहरे आँखों के आगे से घूम गए बधाई आ० डॉ० साहब.
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