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लघुकथा- साथी
कोर्ट में सीमा के नाम की आवाज लगते ही पति को दिन में तारे दिखाई देने लगे. अब उसे सजा से कोई बचा नहीं सकता. इस का उसे अहसास हो गया था. उस की इसी पत्नी ने उसे कई बार मना किया था. रिया के झांसे में नहीं आए. मगर वह नहीं माना था . उस का तर्क था कि रिया ऑफिस में नईनई लगी है. उसे काम नहीं आता है. इस कारण वह उस की मदद कर देता है.
“मगर उस फोटो को देखो. वह आप के साथ किस तरह अड़ कर खड़ी है. उस की निगाहें पढिए. मुझे उस के इरादे अच्छे नहीं लग रहे हैं. कहीं आप भी तो उस के चुंगल में तो नहीं जाना चाह रहे है ?”
“ अरे नहीं रे ! तू यूँ ही चिंता करती है.”
“ मैं चिंता नहीं कर रही हूँ. लोग कहते हैं इसलिए आप को समझा रही हूँ. मगर, आप के इरादे भी ठीक नहीं लग रहे हैं. कहीं आप भी उस का फायदा उठाने की सोच रहे हैं ?” सीमा ने याद दिलाया, “ उस रात भी आप काम के बहाने ऑफिस में रुके थे ?”
इस पर वह चिढ़ गया था ,” तुझे तो शक करने की बीमारी है.”
“ मैं शक नहीं कर रही हूँ. बता रही हूँ. कल से कुछ हो जाए तो मुझे मत कहना. तुम ने याद नहीं दिलाया था,” यह याद आते ही वह सहम गया.
अब उसे सजा मिलना तय थी. क्यों की उस की पत्नी ही रेप केस की मुख्य गवाह थी . इस कारण, दुनिया की कोई ताकत उसे बचा नहीं सकती. यह वह जान चुका था.
“ माय लार्ड ! अब इस केस की मुख्य गवाह यानि आरोपी की पत्नी का बयान सुन लीजिए. जिस ने खुद आरोपी को चेताया था कि वह रिया का नाजायज फायदा न उठाए.” यह सुन कर कोर्ट में सन्नाटा छा गया.
“ जी हूजूर ! वकील साहब सही फरमा रहे है....” सीमा अपने बयान दे रही थी. और इधर सीमा के पति को अपने अपराधी होने का पूरा एहसास होने लगा. अब उसे रेप के केस में सजा होना तय थी.
“ जज साहब ! रिया जैसी लड़की पद, पैसा और पोजीशन के लिए कुछ भी कर सकती है. आखिर एक फोन के बुलावे पर कहीं भी आ जाना इस के पेशा जो है. इसी से आप समझ सकते हैं कि मेरे पति बेक़सूर है. उन्हें जबरन फंसाया जा रहा है.”
यह सुनते ही सभी आवक रह गए.
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(मौलिक व अप्रकाशित)
२७/०२/२०१६
वाह आदरणीय ओमप्रकाश जी ,कथा को बढिया मोड दिया।पत्नी हर हाल में अपना फर्ज बखूबी निभाती है ।बहुत बहुत बधाई इस बिचार के लिए ।
आदरणीय पवन जैन जी आप का शुक्रिया. आप को लघुकथा अच्छी लगी.
बहुत बढिया टर्न लिया कथा ने .. ! बधाई स्वीकारें आदरणीय
आदरणीय सुधीर द्विवेदी जी लघुकथा के समर्थन के लिए आप का आभार.
बातों बातों में आप उस मुकाम पर लघुकथा को ले आए, जहाँ आदर्श आगे आ गया - सुंदर लघुकथा , बधाई हो
आदरनीय मोहन बेगोवाल जी आप का कहना सही है. कई बार पत्नियाँ मुसीबत में पति को छोड़ कर नहीं जाती है. सादर आभार आप का
शुक्रिया आदरणीय Pankaj Joshi जी . आप नस लघुकथा को समर्थन दिया.
जनाब ओमप्रकाश साहिब , सीख देती अच्छी लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
आदरणीय Tasdiq Ahmed Khan जी आप का शुक्रिया. आप ने लघुकथा पर अपन अमूल्य समर्थन दिया.
कोर्ट रूम की बहस और पत्नी का सच को छोड़ अपने जीवन साथी के पक्ष में ब्यान देना , रोचक कथा हुई आदरणीय ओमप्रकाश जी .
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