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दौर-ए-हाजिर को प्रस्तुत करती अच्छी लघु कथा । हार्दिक बधाई नीता जी
वाह बहुत खूब ,कम शब्दों में गहरी बात ,हार्दिक बधाई आदरणीया नीता जी
जबरदस्त कटाक्ष किया है आदरणीया नीता सैनी जी. अच्छी लघुकथा प्रस्तुत हुई है, बधाई.
बहुत खुबसुरत मोड़ दिया आपने | बढ़िया कथा माँ आखिर माँ होती हैं झूठ कसच पहचान लेती है|
कुछ देर पहले बेटे पर गर्व करती माँ, खुद को ठगा सा पाकर मन को संयत करते हुए बोली "बेटा..मैं तेरी माँ हूँ। तेरे बचपन से तेरी पहली साथी, तुझे तुझसे भी ज्यादा जानने वाली। अभी तूने मेरी झूठी कसम खायी थी न !!"--------बेहद मार्मिक प्रस्तुति हुई है आपकी आदरणीय सुनील जी। सच कहा है आपने की बचपन के पहला साथी तो माता -पिता ही होते है और उनकी झूठी कसम खाना मन को विहाला गयी ये पंक्तियाँ। बहुत -बहुत बधाई आपको।
अच्छी हुई कहानी . सही माँ-बाप ही प्रथम मित्र होतें हैं,फिर माँ तो अपने बच्चे की रग रग से वाकिफ होती है. बेटे को भले ही झूठ का पैमाना लघु लगा होगा पर माँ के मर्म को चोट पहुंचा गयी उसकी झूठ.
वाह ! शानदार अंत लिए अच्छी लघुकथा लिखी आप ने . बधाई आदरणीय सुनील वर्मा जी
बहुत खूब !!! क्या बात कही | माँ-बाप से अधिक अपने बच्चों को भला कौन समझ सकता है | मन प्रसन्न कर दिया आपने आ. सुनील जी ! ढेरों बधाइयां संग अनेकानेक शुभकामनाये | सादर
चल चित्र जैसी कथा साथ ही मार्मिक सिर्फ बधाई की हकदार।बहुत बहुत शुभकामनाएँ।
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