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जीवन साथी के साथ नोकझोंक और रसोई घर की अहम् भूमिका ,बढ़िया रश्मि जी .
//तुम्हें घूमने के लिए कह दिया लेकिन तुम खामख्वाह ही गुस्सा हो गए।//
// ये घूमना ,फिरना...खैर, तुम क्या जानो ! //
पत्नी घुमने जाने कहती है या पति कहीं अकेले घुमने जाना चाहता है ?
क्षमा करें इस विधा से बिलकुल अनजान हूँ इसलिए मार्गदर्शन निवेदित है. रोटी की विभिन्न दशाओं के सूक्ष्म प्रतीकों के बावजूद कथा वैसी नहीं खुल रही है जैसी खुलनी चाहिए. सादर
लेखन बहुत अच्छा हुआ है और वाक्य -विन्यास भी सुन्दर है आदरणीया रश्मि जी , परन्तु , पति -पत्नी के बीच में वित्तीय अभाव को दर्शाती ये कथा ज़रा उलझ गयी है।
पढ़ते हुए बीच में लगा कि इस लघुकथा का कथ्य , शायद पत्नी को बाहर नौकरी पर न जाने देने को उभार देगा , लेकिन सहसा कथा मुड़कर एक दूसरे कथ्य की ओर जाती हुई दिखाई दी।
जरा और पढ़ने पर , अब लगा कि कथा के संवाद में पति का , पत्नी को ताना देना कि वो गृहस्थी में रुपये कमा कर सहयोग नहीं देती है , तो कथ्य इससे सम्बंधित होगा। लेकिन जरा और आगे बढ़ने पर इस कथ्य ने भी कथा से अपना पीछा छुड़ा लिया।
अब आखिरी पंक्ति में , पत्नी के संवाद में जाहिर होता है कि वो ट्यूशन करती है घर में , तो कथ्य -कथा सब यहाँ आकर विलुप्त हो गयी। यानी रोटी पर चुपड़ी घी व्यर्थ हो गयी अबकी। हा हा हा हा....... बधाई आपको यहाँ लघुकथा पर कोशिशों के लिए।
हार्दिक बधाई आपको आदरणीया रश्मि तारिका जी । मतलब साधने रोटी पे घी लगाने लगा.
घर में वित्तीय अभाव में जीवन साथी से तकरार स्वाभाविक है किन्तु जब पति चाहता है की पत्नी आर्थिक सहायता करे तो उसे बाहर नौकरी भी क्यूँ नहीं करने देता लघु कथा की अंतिम पञ्च लाइन छाप छोड़ती है
बहुत बहुत बधाई रश्मि जी
अच्छी लघु कथा हेतु बधाई स्वीकारें
आटे की लोई गुस्से के दबाव में बेलन से चिपक गई....सुन्दर ,तुम्हें घूमने के लिए/ या घुमाने के लिए ?...बहरहाल रचना सुन्दर है ,हार्दिक बधाई आदरणीया रश्मि तारिका जी , बधाई प्रेषित ! सादर
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