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बधाई आदरणीय सतविंदर जी . अपनी बिरादरी तो अपनी ही होती है सार्थक रचना के लिये बधाई आपको
ये जातिवाद बिरादरीवाद इस देश को न जाने कहाँ ले जाएगा ...शानदार सटीक कटाक्ष करती हुई रचना के लिए हार्दिक बधाई आ० सतविंदर जी
वर्तमान में अब कर्त्तव्य पालन में बिरादरी आड़े आ ही जा रही है, सुन्दर रचना आदरणीय सतविंदर कुमार जी हार्दिक बधाई आपको ! सादर
हालात-ए-हाज़रा को विषय बनाकर प्रदत्त विषय पर बढ़िया लघुकथा कही है भाई सतविन्द्र कुमार जी, बहुत खूबI दरअसल यह एक ऐसा विषय है जो बहुत अरसे तक पुराना होने वाला नहीं हैI इस सुंदर प्रस्तुति पर मेरी दिली बधाई स्वीकार करेंI
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