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जाति बिरादरी के नाम पर अपने फर्ज से मुंह मोड़ते, ऐसे लोगों ने ही देश की छवि को धूमिल किया है , आचची कथा बन पड़ी है बधाई स्वीकारें आदरणीय ।
बहुत सधा हुआ शिल्प ,,वाह ,प्रदत्त विषय को पूर्णतया परिभाषित कर रही है आपकी ये रचना ,हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय सत्विनदार जी
~दांत काटे की रोटी~
'तुझे मन किया था न कि झूठा नहीं खाया कर किसी का फिर भी | एक ही पेप्सी की बोतल से चारो पिए जा रहें थे |"
पर माँ दादी तो हम सब भाई-बहनों को एक ही थाली में खिलाती थी | मना करो तो कहतीं कि जूठा खाने से प्यार बढ़ता है | हम भी आपस में अच्छे दोस्त हैं और चाहते हैं प्यार बढ़े | '
अपनी बेटी की लाश को देख उसके आस पास उसके उन्हीं घनिष्ठ मित्रों को न पा रश्मि ख्यालों में डूबी हुई थी |
पुलिस झकझोरती हुई पूछती है-" क्या पहचान रही हैं इस लड़के और लड़की को ?"
माँ की तन्द्रा टूटी , "हाँ इनसे तो मेरी बेटी की दांत काटे की रोटी थी |"
अधिकारी बोला-"इसी रोटी के चक्कर में ये और इनके दो और साथियों ने मिलकर आपकी बेटी का क़त्ल कर दिया |"
" मतलब, ये क्या कह रहें हैं आप | चारो में तो बहुत प्रेम था | " पिता आश्चर्य से बोले
"हाँ होंगा पर एक नौकरी और ये चार | आपकी बेटी इन सब से तेज थी अतः ..|"
और मुकेश... ! आशंकित हो वो फिर बोले |
वो पढ़ने में कमज़ोर था अतः बच गया |
मौलिक एवम् अप्रकाशित
दगाबाज़ को प्रदर्शित करती सुन्दर रचना.
ईर्ष्या के दुष्परिणामों का उम्दा बयान ! सुंदर कथा आ. सविता जी ! बधाई
मोहतरमा सविता साहिबा , फरेब पर कटाछ करती अच्छी लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
उफ़! ये कैसी दोस्ती ये कैसे साथी . मैत्री का एक ये भी रूप .विषय आधारित सुंदर प्रस्तुति सविता जी .
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