आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
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भाई सुनील जी, आप शब्दों के जादूगर हो और विषय चुनने की कला में भी आप माहिर हैं| यह रचना भी उसी का एक उदाहरण है| इस सार्थक रचना के सृजन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें|
अंगदान आज भी ऐसा विषय है जिसपर बहुत जागरूकता की जरुरत है| प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया रचना, बधाई आपको
नामर्द
आज दिल्ली मेट्रो में मंटो से मुलाकात हो गई ।
दुआ सलाम के बाद ठंडा गोश्त अफ़साने के अदालती मसले पर मालूमात की।
उन्होंने दिल्ली के हालात जानना चाहे।
यहां ,यहां दिल्ली में तो जिंदा गोश्त पर तकरीरें चल रहीं है।
देख रहे हो न ,यह अवाम न जाने किस आपाधापी में लगी है।किस जिजीविषा में जिंदा है,दुनिया की स्याहियो में भी हम रज्जाई है। दिखते रहते हैं अर्धनग्न जिस्म बिना किसी शर्मो हया के ।
अभी देखो ,यह भीड़ में हलचल, कसमसाहट है, बाहर निकलने की, फँस गई है चक्रव्यूह में, चीख सुनाई दी, किसी ने चिकोटी काटी,कहाँ काटी ,क्यों काटी,किसने काटी नजरें ढूंढ नहीं पाती,सब के सब सफेदपोश जो है ।समझ नहीं आता ये जिस्म जिंदा भी है,रूह है इनमें या सिर्फ चलते, फिरते ,खाते,हगते धरती पर बोझ।इन्हें किसी माँ ने दूध पिलाया है,या सीधे चले आए हैं शैतान के साथ ।
वाह, क्या तस्वीर है,राजधानी दिल्ली की ?
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
प्रस्तुति के अंत में केवल 'मौलिक व अप्रकाशित' लिखें. कृपया अपना नाम हटा लीजिये. यह नियम विरुद्ध है सादर
मैंने नाम हटाने का प्रयास किया परंतु सफल नहीं हुआ , अपने स्तर से एडिट करने की कृपा करें ।सादर
आदरणीय संचालक महोदय से हटाने के लिए निवेदन कीजियेगा. सादर
आदरणीय संचालक महोदय ,प्रप्रविष्टि में नाम हटाने की कृपा करें ,मैने एडिट करने का प्रयास किया परंतु सफल नहीं हुआ ।सादर
धन्यवाद आदरणीय विजय जोशी जी ।
धन्यवाद आदरणीय शहजाद जी ।
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