आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
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आपके उत्साहवर्धन का दिल से आभार आ० नीता कसार जी I
वाह ! क्या खूब प्रतीकात्मक लघुकथा हुई है ये सर जी आपकी , आपकी लेखनी ने हम सबको फिर से चमत्कृत कर दिया है . पीपल ,देवदार और मंदिर ,गिरजाघर और मस्जिद को प्रतीक बनाकर जो कथ्य को संदर्भित किया है वो सच में अपरिकल्पनीय है . कथा की महीन बुनावट में आपकी लेखन कौशल की बानगी यहाँ देखते ही बनती है .
लेकिन सर जी आप ही कहते है कि कथ्य को तथ्य का कुशन मिलना चाहिए तो क्या हमारे देश की आज की
आर्थिक प्रगति के दौर में जहां भारत विश्व की एक आर्थिक महाशक्ति के रुप में उभरकर आया है और भारत में सूचीबद्ध कंपनियों की संख्या अमेरिका के पश्चात दूसरे नम्बर पर है। ऐसे वक्त में कथा को इस तरह से संदर्भित होना सही है क्या ?
फ्लेश बैक में इस सन्दर्भ को व्यख्यादित किया जा सकता है क्योंकि उदारीकरण और आर्थिक सुधार की नीति लागू करने से पहले देश में ऐसी परिस्थितियाँ तो जरूर थी लेकिन देश की वर्तमान स्थिति पर इस तरह यूनानियों द्वारा तिरस्कार किया जाना सही नहीं लगता है . और कारगिल युद्ध में भी कई आम्भी सामने आये थे .
सादर अभिनन्दन आपको .
आप जिस चीज़ की बात कर रही हैं वह महज़ ऊपरी लेबल है मोहतरमा कांता रॉय जी, हकीकत नहीं हैI शायद आप इस तथ्य से गाफिल हैं कि किसी समय विश्व व्यापार में भारत का हिस्सा 40 प्रतिशत से अधिक हुआ करता था, और आज यह 4 प्रतिशत से भी कम हो चुका हैI और हाँ, कथ्य और तथ्य के कुशन वाली बात टिप्पणी देते हुए भी लागू होती हैI बहरहाल, आपने इतने मनोयोग से इतनी "वैदुश्यपूर्ण" प्रतिक्रिया दी, उसके लिए आपका ह्रदयतल से आभारी हूँI
बहुत शानदार रचना विषय पर, पंच लाइन जबरदस्त है| जिसे अपनों ने ही लूट लिया हो, उसे गैर क्या लूटेंगे, बहुत सटीक| हर बार की तरह एक और शानदार प्रस्तुति आ योगराज सर, बहुत बहुत बधाई आपको
रचना पर उपस्थित होकर मेरा मनोबल बढाने हेतु हार्दिक आभार भाई विनय कुमार सिंह जीI
आपकी बधाई सर आँखों पर भाई वीर मेहता जी, आपकी सरहना से मेरा मनोबल बढा, दिल से शुक्रियाI वैसे यह वही 1989 में लिखी पंजाबी लघुकथा है, जिसकी स्कैन्ड कॉपी आपको कुछ महीने पहले दिखाई थीI याद आया?
मोह्रतरम समर कबीर साहिब जी, मैं पहले अन्य साथिओं को रचना पोस्ट करने का अवसर देना पसंद करता हूँI इसीलिए अपनी रचना बाद में डालता हूँI आपने रचना को सराहा, आपका बहुत बहुत धन्यवादI
आदरणीय योगराज सर आपने बहुत सधे हुए ढंग से आज के भारत की सच्ची तस्वीर को शाब्दिक किया है. वाकई यह देश अपनों के हाथों ही लुट चूका है ऐसे में लूटने के लिए कोई यहाँ क्या आये. शानदार लघुकथा. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई निवेदित है सादर
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