आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
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हमेशा की तरह बेहतरीन रचना, देश प्रेम से ओत प्रोत| आप की रचनाएँ पाठकों को अपने साथ बहा ले जाती हैं और ये रचना भी कुछ ऐसी ही है| बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए
बहुत खूब आदरणीय वीर मेहता भाई जी, अपाहिज कलाप्रेमी जो पहले फौजी भी रह चुका था, के द्वारा देशप्रेम का जो सन्देश आपने अपनी रचना में दिया वो बहुत बढ़िया है| इस रचना के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें|
हिन्दुस्तान में आतंकवादियों के लिए हर हिन्दुस्तानी एक फौजी ही होता है , को आपने जो कथ्य बनाया है वो अवर्णीय है . अपने संवादों की महीन बुनावटो के कारण प्रवाहमयी इस कथा का सौन्दर्य यहाँ देखते ही बनता है .
आपकी प्रस्तुति यहाँ सुगठित और कसी हुई बन पड़ी है .
ह्रदय से आपको बधाई आदरणीय वीर जी इस लाजवाब लघुकथा के लिए .
आदरणीय वीरेंदर जी, देश प्रेम से भरपूर इस शानदार लघुकथा पर हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर
खोने का दर्द--
एक बुजुर्ग को हाथ देते देखकर वो रुक गया| बाइक को खड़ा करके सवालिया नज़रों से उनको देखते हुए वो कुछ पूछने ही वाला था कि बुजुर्ग ने उससे पूछा " बेटे, कहाँ जा रहे हो, लगता है कोई इंतज़ार कर रहा है तुम्हारा "|
उसके चेहरे पर झल्लाहट का भाव आया और एक बार उसने सोचा कि एक भद्दी सी गाली दे उनको, लेकिन अपने गुस्से को जज़्ब करते हुए वो बोल " आपको कहीं जाना है, लिफ्ट चाहिए, रोक क्यूँ लिया मुझे "!
" नहीं कहीं जाना नहीं है, लेकिन तुम इस तरह बाइक क्यूँ चला रहे हो ", बुजुर्ग ने बहुत शांत स्वर में कहा|
" अरे चाचा, क्यूँ खाली पीली दिमाग का दही कर रहे हो| तुमको क्या दिक्कत है मेरे बाइक चलाने से, अपने काम से काम रखा करो ", भुनभुनाते हुए वह बाइक स्टार्ट करने चला|
अचानक बुजुर्ग ने बाइक के हैंडल में टंगे हेलमेट को पकड़ा और उसे उतार कर उसकी तरफ बढ़ाया| उसका हाथ एक्सेलरेटर पर रुक सा गया|
" मेरा बेटा भी शायद तुम्हारी तरह ही जल्दी में था और हेलमेट पहनना भूल गया था| अब तुमको भी तुम्हारे माँ बाप सिर्फ तस्वीरों में नहीं देखें इसलिए इसे पहन के चलाया करो ", बोलते हुए बुजुर्ग आगे बढ़ गए और एक और बाइक सवार को हाथ देने लगे| उसने हेलमेट सर पर लगाया और बुजुर्ग को सलाम करता हुआ आगे बढ़ गया|
मौलिक एवम अप्रकाशित
बहुत बहुत आभार आ शेख शहज़ाद जी, आपने रचना को इतना मान दिया, ह्रदय तल से आभार
आदरणीय विनय कुमार सिंह जी बहुत सुन्दर लघुकथा और सुंदर सन्देश देती उम्दा लघुकथा .
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