आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आदरणीय सुनील वर्माजी, आपने प्रस्तुति के इंगित को जितनी स्पष्टता से पकड़ा है, वह आपके पाठक-मन की निर्द्वंद्वता का उदाहरण है. हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय, आपकी इस मुखर टिप्पणी के लिए.
सादर
यथार्थ चित्रण, आदरणीय भाई जी। हार्दिक शुभकामनाएं।
जय हो.. भाई रवि जी ! आप जैसे लघुकथा-विधा के अन्यतम साधकों से प्रशंसा पाना सदा से अपेक्षित रहा है. हार्दिक धन्यवाद, अनुज.
शुभ-शुभ
रचना प्रयास को अनुमोदित करने केलिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय पंकज भाईजी.
जीते जागते लोग जब तमाशबीन बने रहते हैं फिर दीवार पर टंगी तस्वीर भी क्या करे वो तो अपने सामने ही अपने सन्देश ,मानवीय मूल्यों, सिद्धांतों की धज्जियाँ उड़ती देख फड़फड़ा ही सकती है बहुत खूब यथार्त चित्रण प्रदत्त विषय को सार्थक करती लघु कथा |
हार्दिक बधाई आ० सौरभ जी |
रचना के इंगित को अनुमोदित करने केलिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारीजी.
बेहतरीन लघुकथा हुई है आ० सौरभ भाई जी I राष्ट्रपिता भी यहाँ एक तमाशबीन ही साबित हुए हैं, शायद आज उनकी मानववादी सोच का अप्रसांगिक होना भी एक कारण हो सकता है I रचना में जिस प्रकार दृश्य चित्रण किया गया है, वह बेहद प्रभावित कर गया, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें I इस पंक्ति को यदि संवाद में बदल दिया जाए तो बेहतर होगा :
//दोस्त के बाबूजी ऑफ़िस-ऑफ़िस गिड़गिड़ाते हुए जब घूम रहे थे, तब तो किसीको उनकी परवाह नहीं थी, आज आये हैं थैली का मुँह खुलवाने ! //
आदरणीय योगराजभाईजी, लघुकथाओं पर आपसे मिला अनुमोदन विशेष रूप से आश्वस्त करता है. साथ ही, वह आगे सचेत रहने की प्रेरणा भी देता है.
जहाँ उक्ति को संवाद में परिणत करने की बात है तो, हुज़ूर, मैं यही कहूँगा कि आपने वहीं पकड़ा है, जहाँ मैं सर्वाधिक उलझा हुआ था. वस्तुतः, आप स्वीकार करें आदरणीय, कि यह उक्ति वस्तुतः माँ के कथन के रूप में ही लिखी गयी थी. जो वह नेताजी के चमचे के कहे पर चीख के रूप में बाहर आनी थी. लेकिन लघुकथा के ’लाउड’ हो जाने के भय से मैंने इसे लेखकीय उक्ति या सूत्रधार बच्चे के कहे (सोच) में बदल दिया, ताकि, लघुकथा का मूल विन्यास लो-प्रोफ़ाइल में रहे.
जबतक इसविन्दु पर मैं आगे कुछ सोचता बारह बज गये और मैं इस रचना को मैं इसी रूप में पोस्ट कर दिया. यानी, माँ की चीख लेखकीय-उक्ति बन गयी. अब समझ में आ रहा है कि यह उक्ति माँ के कहे संवाद के रूप में अधिक प्रभावी होती, जैसी कि यह मूल कथा में थी.
आपसे मिली सुधारात्मक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार आदरणीय.
सादर
कथा-तत्त्व को अनुमोदित करने केलिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानीजी.
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