आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय प्रतिभा पांडे जी!बहुत अच्छा संदेश देती हुई बेहतरीन लघुकथा!
"बलि "
तय समय पर गाँववासी ठाकुर के घर पर इकट्ठा हो गये,कोई नही जानता उन लोगों के बीच पशु प्रेमी और पुलिस वाले भी सादे भेष में मौजूद है। बडी मन्नतों के बाद ठाकुर के घरमें,किलकारी गूँजी । सब के सब चहक रहें थे, बस उदास था तो ठाकुर का बेटा कल्लू,उसकी खुशी रात में माँ,बाबा की कानाफूसी सुन कपूर बन उड़ गई । जैसा नाम वैसा रूप,शिशु को देख सब खुश होकर कहते मैंदा की लोई है लल्ला ,मन में उठ रहे सवालों के जवाब उसके पास नही थे ।आज मन्नत पूरी करने का दिन आ गया ,सबके मन में यही सवाल था, बच्चे के पैदा होने की खुशी ठाकुर वादा पूरा करेंगे। आँगन के बीचोंबीच पूजा विस्तारी गई ,पूजा के पास परिजनों के बैठने की व्यवस्था की गई,साथ में ही नन्हा सा बकरी का बच्चा बँधा था जिसे तिलक टीका लगाकर माला पहनायी गई
"कमज़ोर मन के लोग बलि के समय अपना मुँह,आँखें हथेली से ढंक लें चीख़ शुभ नही होती"।
अचानक लोगों की चीख़ निकलते निकलते बची ,मुँह खुला का खुला रह गया।
देखा तो बच्चे के वज़न के कुम्हड़े को तलवार के वार से दो फाड़ कर दिया गया ।बकरी का बच्चा टुकुर टुकुर देख रहा था।
ठाकुर मुस्कुरा कर बोल पड़े , लो कर लो बात बूंद भर ख़ून नही बहा ।
'बलि के दिन लद गये, जश्न शुरू किया जाय'।
( मौलिक व अप्रकाशित)
सच कहा नीता जी, जब मासूम की बलि दी जाती है तो लोग तमाशबीन ही तो बने रहते हैं जो एक ह्रदय विदारक कु प्रथा होती है आपने इस लघु कथा के माध्यम से इस कुप्रथा के खिलाफ बहुत अच्छा सन्देश प्रेषित किया है जश्न इस तरह भी तो मनाया जा सकता है .बहुत खूब दिल से बधाई इस सुन्दर लघु कथा के लिए | शुरू में तय समय पर तमाशबीन इकठ्ठा हो गए ...ऐसा कुछ करती तो और प्रभावशाली होती |
रचना निस्संदेह बढ़िया और सार्थक सन्देश दे रही है, किन्तु जैसा कि भाई उस्मानी जी ने कहा आप भी तमाशबीन शब्द को पूरी तरह समझ पाने में असमर्थ रही हैं I बहरहाल प्रतिभागिता हेतु अभिनन्दन स्वीकारें I
इस सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणिया नीता जी |
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