आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आदरणीय समर कबीर साहिब बन्दे की कोशिश को आपने सराहा , आपका तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय उस्मानी साहिब लघुकथा को आत्मीय प्रशंसा से अलंकृत करने का दिल से आभार।
बहुत सुन्दर लघुकथा हुई है आ० सुशील सरना जी, मगर अंत में थोड़ी ढीली रहा गई I
//मगर अफ़सोस सब तमाशबीन निकले। इन तमाशबीनों में कोई आदमी न मिला।// इन शब्दों की कोई आवश्यकता नहीं थी I
आदरणीय योगराज सर प्रस्तुति पर आपकी सुझावात्मक प्रशंसा का दिल से आभार। कोशिश रहेगी कि कसावट थोड़ी और की जाए। आपका मार्गदर्शन शिरोधार्य है सर।
आदरणीय पंकज जी आपके स्नेह का हार्दिक आभार।
हर चीज तमाशे का ही हिस्सा लगने लगता है ऐसे में, बढ़िया रचना विषय पर| बधाई आपको
आदरणीय विनय कुमार जी प्रस्तुति में विषयानुरूप समाहित भावों को मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी रचना में निहित भावों को मान देने का हार्दिक आभार।
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