आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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aadrniya aabhar aapka sikh payege aap sab ke protsahan se
aadrniya aabhar aapka protsahan ke liye
जनाब राजेंद्र कुमार साहिब ,प्रदत्त विषय को सार्थक करती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
मदारी रोल बदलते देर नहीं ,बहुत खूब ।बधाई आदरणीय ।
janab tahe dil se aapki mubarakbad vasul paye aur aage bhi sikh sake iske liye aapke protsahan ka aabhar
janab tahe dil se aapki mubarakbad vasul paye aur aage bhi sikh sake iske liye aapke protsahan ka aabhar
सच कहा कब किसका तमाशा बदल जाए कब कौन तमाशबीन बन जाए कुछ नहीं कह सकते |अच्छी लघु कथा बहुत बहुत बधाई आ० राजेंद्र गौड़ जी
aadrniya rajesh kumari ji aapki protsahit karti tippani ka hardik aabhar
//तमाशा बड़ा बेरहम होता हैं कब कौन मदारी रोल बदलते देर नही// बहुत ही सुंदर पंचलाइन आदरणीय राजेन्द्र गौड़ भाई जी| इस लघुकथा के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें|
डुग डुग डुग डुग ..... ' हाँ तो भाईजान,कद्रदान। .. बन्दे का हर इन्सान को सलाम। मेरे भाईयो सब दो दो कदम पीछे हो जाएँ। आज आपको ऐसा करतब दिखाया जाएगा कि आप अपने दांतों तले उंगली दबाए बिना न रह सकेंगे।'' डुग डुग डुग डुग डुग डुग ......
'काली' ...
'हाँ उस्ताद '
'हर करतब दिखाएगी ' ...
'दिखाऊंगी '
'मुकर तो नहीं जाएगी '...
'नहीं सरकार'
'रस्सी पर चल के दिखलाएगी' ...
'दिखलाऊँगी'
'नीचे अंगारों से डर तो नहीं जाएगी '....
'नहीं उस्ताद '
जम्बूरे की ८-१० साल की बच्ची दो बांसों के बीच लगी रस्सी पर चढ़ कर अपना बॅलन्स बनाने लगी। रस्सी के नीचे ज़मीन पर अंगारे भभक रहे थे। जम्बूरे ने अपनी डुगडुगी बजाई। दर्शक हैरत से उस बच्ची को रस्सी पर चलता देखने लगे। जरा सा बैलेंस बिगड़ते ही बची अंगारों पर गिर सकती थी। डुगडुगी की आवाज़ बच्ची के बैलेंस को बना रही थी। रस्सी के दूसरे छोर पर पहुँचने से पहले ही डुगडुगी की आवाज़ रुक गयी। जम्बूरा सीने को पकड़ कर गिर गया शायद उसे दिल का दौरा पड़ा था। बच्ची जोर से चिल्लाई 'पापा ' और वो रस्सी से कूद कर दौड़ती आई। रोते रोते पापा के सीने को जोर जोर से मसलने लगी। मगर तब तक उसकी सांसें थम चुकी थीं। सब तमाशबीन बने तमाशा देख रहे थे। लोग इसे भी तमाशे का हिस्सा मान रहे थे। तालियां बज रही थी सिक्के उछल रहे थे। बच्ची मदद लिए हाथ फैलाए रो रही थी। बच्ची ने दूर पडी डुगडुगी उठाई और बजाते हुए कहा 'कद्रदानों,मेहरबानो ! अब तो इस तमाशे पर रहम करो। ज़िंदगी ने सबसे बड़ा तमाशा दिखा दिया है। अब मुझपर इतना करम करो कि ज़िंदगी के इस आखिरी तमाशे पर तालियां न बजाओ। ज़मीन पर सिक्के गिराने की जगह मेरे उस्ताद को कांधा दे दो। मगर अफ़सोस सब तमाशबीन निकले। इन तमाशबीनों में कोई आदमी न मिला।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
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