आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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जिसने दुख झेला है वह आगे आता है ,बाकी तो तमाशबीन ।बधाई आदरणीय ।
जी सही कहा आपने | जब अपने पर बीतती है तो उसकी सोच बदलती है | हार्दिक आभार आपका आदरणीय पवन जैन साहब
लघुकथा पसंद करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी | सादर
प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सार्थक कथा ,बधाई स्वीकार करें आदरणीय लक्ष्मण लडिवाला जी
भूख
"उफ़.." रोटी के थाली में गिरते ही, थाली रोटी के बोझ से बेचैन हो उठी| रोज़ तो दिन में दो बार ही उसे रोटी का बोझ सहना होता था, लेकिन आज उसके मालिक नया मकान बनने की ख़ुशी में भिखारियों को भोजन करवा रहे थे, इसलिए अपनी अन्य साथियों के साथ उसे भी यह बोझ बार-बार ढोना पड़ रहा था| थाली में रोटी रख कर जैसे ही मकान-मालिक आगे बढ़ा, तो देखा कि भिखारी के साथ एक कुत्ता बैठा है, और भिखारी रोटी का एक टुकड़ा तोड़ कर उस कुत्ते की तरफ बढ़ा रहा है, मकान-मालिक ने लात मारकर कुत्ते को भगा दिया| और पता नहीं क्यों भिखारी भी विचलित होकर भरी हुई थाली वहीं छोड़ कर चला गया| यह देख थाली की बेचैनी कुछ कम हुई, उसने हँसते हुए कहा:
"कुत्ता इंसानों की पंक्ति में और इंसान कुत्ते के पीछे!"
रोटी ने उसकी बात सुनी और गंभीर स्वर में उत्तर दिया:
"जब पेट खाली होता है तो इंसान और जानवर एक समान होता है| भूख को रोटी बांटने वाला और सहेजने वाला नहीं जानता, रोटी मांगने वाला जानता है|"
सुनते ही थाली को वहीँ खड़े मकान-मालिक के चेहरे का प्रतिबिम्ब अपने बाहरी किनारों में दिखाई देने लगा|
(मौलिक और अप्रकाशित)
bhai ji katha me sandesh sabhi manvo ke liye, samajh use hi
" ja ke peir na pare biwai wo kya jane pir parai"
prtiko ke madhayam se katha keise likhe uska achcha udharan sesh yaha sabhi sudhi jan hei we hi kah sakege
बहुत-बहुत आभार आदरणीया जानकी जी, लघुकथा का यह प्रयास आपको ठीक लगा और अपनी टिप्पणी द्वारा आपने मेरी हौसला अफजाई की|
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