आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आदरणीय सर जी हार्दिक आभार
अपने ही सहारा बनते हैं और अपने ही धोखा भी देते हैं, लेकिन गिर कर सम्भलना ही जीवन है| सुंदर रचना, बधाई आपको
आदरणीय विनय सर जी हार्दिक आभार
संपत्ति के लिए भाईयों के बीच रचा गया षड्यंत्र ,पञ्च लाइन बहुत शानदार है ,हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया अनीता जैन जी
हार्दिक बधाई आदरणीय अनिता जी!बेहतरीन प्रस्तुति! आजकल भाई ही भाई का गला काट रहा है!
आदरणीय प्रतिभा जी हार्दिक आभार
आदरणीय समर सर जी हार्दिक आभार आपकी बात का घ्यान रख सही दिशा में प्रयास करूँगी
आदरणीया अनीता जी, अपने शीर्षक को सार्थक करती लघुकथा के प्रयास के लिए हार्दिक बधाई निवेदित है सादर
आदरणीय मिथिलेश सर जी हार्दिक आभार
शुक्रिया सखी
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