सादर अभिवादन !
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का आयोजन लगातार क्रम में इस बार बासठवाँ आयोजन है.
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
17 जून 2016 दिन शुक्रवार से 18 जून 2016 दिन शनिवार तक
इस बार गत अंक में से तीन छन्द रखे गये हैं -
दोहा छन्द, कुण्डलिया छन्द और सार छन्द
हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं.
इन छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना करनी है.
प्रदत्त छन्दों को आधार बनाते हुए नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
[प्रस्तुत चित्र अंतरजाल से प्राप्त हुआ है]
रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, उचित यही होगा कि एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो तीनों छन्दों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.
दोहा छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
कुण्डलिया छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
सार छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 17 जून 2016 दिन शुक्रवार से 18 जून 2016 दिन शनिवार तक यानी दो दिनों केलिए रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...
विशेष :
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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Replies are closed for this discussion.
आदरणीय केवल प्रसाद्जी
सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई , प्रथम पंक्ति देख लीजिए।
.............. अलंकार रस छंद, व्याकरण नाक चिढ़ाये.
.मैं आप से सहमत हूं. आपका आभार सादर
जाने क्या करते भये, हे केवल परसाद
किया छन्द के शिल्प को नाहक ही बेस्वाद
नाहक ही बेस्वाद, इसे गढ़ने की कोशिश
बहक गयी क्या बुद्धि, लगी या रचने साज़िश ?
अलंकार रस छन्द, अगर होवें मनमाने
अच्छा भला प्रयास, लगेगा कैसा जाने..
शुभेच्छाएँ
साज़िश की ही बात में, बहके नित्य सुगंध.
फूलों से कहते रहे, बस तुमसे सम्बंध.
बस तुमसे सम्बंध, नहीं भौरे से रिश्ता.
पीकर वह मकरंद, चंद्र को समझे पिस्ता.
नित्य प्रभा का लाल, सृष्टि की करता पालिश.
मगर दिवा अवसान, रात्रि मिल रचती साजिश.
२
छंद स्वाद से है इतर, केवल रस के प्रेम.
शिल्प ज्ञान-विज्ञान में, कुशल खेलते गेम.
जाने कैसा क्यों लगे, ऐसे-वैसे शब्द.
मौन कौन से शब्द हैं, जो रहते हैं स्तब्द.
आपका आभार....सादर
अय हय अय हय .. भाई केवल प्रसाद जी, आपका छन्द-कौशल आपकी प्रतिक्रिया में खुल कर निखरा है.
वाह वाह वाह ! बहुत खूब भाई !
शुभ-शुभ
अरेरेरे केवल भैया ये आप ही ने लिखी है ???
बस इस पर क्या कहूँ
रचना भावों के साथ ही आकार लेती है....विधान बाद में ही आते हैं....जिन्हे समय पर सही कर लिया जाना कोई गलत बात नहीं है. बिन कहे भी स्नेह बना ही रहता है...ऐसा मेरा मानना है. बस आपका विस्वास दृढ़ रहे. आपका आभार, सादर
आदरनीय केवल भाई , कुंडलिया के लिये आपको हार्दिक बधाई ।
बंदर पढ़ता पत्र जो, उसमें मर्कट के हाल. --- मात्रा गिन लीजियेगा , दोनो पद 13 - 13 के हो गये हैं ।
.मैं आप से सहमत हूं. और इसे सही कर लिया है. आपका आभार. सादर
आदरणीय केवल प्रसाद जी, कुण्डलिया छंद का बढ़िया प्रयास हुआ है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. प्रस्तुति को एक बार विधान अनुसार देख लीजियेगा. सादर
मैं आप से सहमत हूं. और इसे सही कर लिया है. आपका आभार सादर
पढ़कर के अखबार अब , पुरखे भी हैरान .
बढ़िया है बानर रहे , बने ना हम इंसान .
हत्या लूट खसोट की , ना कीजै अब बात .
अब टॉपर के खेल में , डाल दिये हैं हाथ .
अभी तलक तो कैद है , हर सीने में आग .
धधक गयी कुर्सी सहित , हो जाओगे खाक .
जिनके मत से आप हो . खाली उनके हाथ .
चार दिनों की चांदनी ,फिर तो काली रात .
छोटा बानर हँस रहा , देख मनुज का हाल .
नर से नारायण बड़ा, लिखता सबका भाल .
( मौलिक एवं अप्रकाशित )
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