आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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बढ़िया पेशकश जनाब तस्दीक अहमद साहब | बधाई स्वीकारें |
लंघन
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देख रहा हॅूं कि स्टेशन रोड के किनारे बने ढाबेनुमा टपरे से लगे एक खंडहर की दीवार के पास बैठे आठ दस भिखारियों को ढावे के मालिक का नौकर बचे हुए जूंठन को एकत्रित कर उन्हें क्रमशः बाॅंट रहा है।
‘‘ हाॅं! बता कितने हैं?‘‘
‘‘ चार‘‘
‘‘ अच्छा, ले कटोरे में दाल, चावल‘‘
‘‘ तू बता रे! आज क्या फिर खाली है?‘‘
‘‘ नहीं मालिक ! दो ही मिले हैं‘‘
‘‘ देख बहुत उधारी अच्छी नहीं, समझा?‘‘
‘‘ सब चुका दूंगा साब! आज तो रोटी दे दो‘‘
‘‘ ले तू रोटी, पर कल से नहीं मिलेगी, उधारी चुकाना होगी पहले ‘‘
‘‘ अबे! तू उधर क्या देख रहा है, मिला कुछ कि नहीं?‘‘
‘‘ एक रुपया ही है साब !‘‘
‘‘ साले ! दिनरात दो कट्टा बीड़ी पीने को दस रुपये खर्च करता है पर खाने के लिये एक रुपया दिखाता है, आज तो ले ले पर कल से नहीं आना‘‘
‘‘ ओ किनारे पर लेटे लाटसाब ! तुम्हें क्या अलग से निमंत्रित करना पड़ेगा, गर्मी में कथरी ओढ़े कल से डले हो, तुम्हें चाहिये कुछ ?‘‘
‘‘ नहीं ‘‘ (धीमें से बोला)
‘‘अरे! क्या मर गया? जोर से नहीं बोल सकता?‘‘
‘‘ कह दिया न!!! कोई जरूरत नहीं !!!‘‘ (अपना रहा सहा सामर्थ्य जुटा कर जोर से बोला)
‘‘अबे ! गरजता क्यों है?‘‘
... बड़बड़ाता, नौकर वापस जा रहा है और मेरे मन में, बीमार भिखारी की आक्रोशित ध्वनि, मानवीयता को धिक्कारते हुए इस प्रकार गूंज रही है मानों मेरे डाक्टरी ज्ञान को चिढ़ाते हुए कह रही हो कि, ‘‘तुझसे बड़ा डाक्टर तो वही है जो जानता है कि लंघन से ज्वर के कष्टों से ही नहीं, कष्टदायी इस जीवन से भी छुटकारा मिल जाता है।‘‘
मौलिक एवं अप्रकाशित
आदरनीय डॉ टी र सुकला जी , भावनात्मक रूप से बहुत ही उम्दा रचना बनी है . बधाई आप को इस रचना के लिए.
बहुत धन्यवाद , अादरणीय ओमप्रकाश जी।
बहुत धन्यवाद , अादरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी।
अापका कथन सही है परंतु कथा मे वांछित अाक्रोश को प्रकट करने के त्रिअायामी मॉडल को प्रस्तुत करने के प्रयास / प्रयोग मे द्रष्टा को अनिवार्य पात्र की तरह लिया गया है। भिखारी, नौकर एवं द्रष्टा तीनों के अपने अपने अाक्रोश दबे हुए हैं। द्रष्टा सब कुछ करने का सामर्थ्य हुए भी कुछ नहीं कर पाता , भिखारी ज्वर की पीड़ा को शांत रहकर सहना चाहता है लेकिन उसे व्यंगोक्ति से डिस्टर्ब किया जाता है एवं नौकर इच्छित राशि न मिलने के कारण ; इन्ही तीनों के अाक्रोशों को एकसाथ प्रकट करने का यह प्रयास शायद कथा के शिल्पज्ञों को खटक सकता है , देखते हैं उनका क्या मत है।
बहुत धन्यवाद , अादरणीय डॉ विजयशंकर जी।
सादर आभार आदरणीय ..किन्तु आपकी ये प्रतिक्रिया गलत थ्रेड में आ गई है |
मतलब जूठन भी फ्री नहीं ...वो तो भिखारियों से भी बड़ा भिखारी है ..झकझोर गई ये लघु कथा ..बहुत मार्मिक
दिल से बधाई आद० सुकुल जी
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