आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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"साले फ़िर पैसा खाँ गये ।" खा गये . फिर भी प्लेयरों की काबिलियत पर शक नहीं मैच फिक्सिंग का शक ...वाह्ह्ह
आक्रोश का ये रूप भी होता है अक्सर टीवी में भी देखते हैं इस तरह का आक्रोश .
बहुत बहुत बधाई आ० राजेंद्र कुमार जी
आदरनीय राजेंदर जी बहुत खूब कहा आप ने . सुंदर लघुकथा. बधाई आप को.
लघुकथा में से पात्रों और खिलाडी (अफरीदी) का नाम हटा दें, रचना का दायरा ज़बरदस्त तरीके से बढ़ जायेगाI क्योंकि कोई माने न माने हिन्दुतानी हों याँ पाकिस्तानी, सभी क्रिकेट के प्रति इतने संवेदनशील है कि उनकी अच्छी/बुरी भावनाएँ तकरीबन एक जैसी ही हैंI लघुकथा अच्छी है, बधाई स्वीकारेंI
आदरणीय यहाँ तो नही किंतु जब पोस्ट करूँगा तो निश्चित ही करूँगा, आपके असीम स्नेह का आभार
हार्दिक बधाई आदरणीय राजेंदर जी!अच्छी लघुकथा!
क्रिकेट के लिए दोनों देशों का जुनून जग जाहिर है , टी वी भी कई घरों में टूटते हैं रोचक कथा , हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीय राजेन्द्र कुमार जी
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