आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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सरहद के समीप उस शहर में आए दिन आतंकवादियों की घुसपैठ होती रहती थी जिसके कारण सेना की बटालियनें हमेशा तैनात रहती। आए दिन तलाशी होती सेना का मार्च होता और बारूद की गंध हवा को बोझिल किए रहती। उस शहर के बाशिंदे दोतरफा मार झेलते। एक ओर आतंकवादियों की धमकी दूसरी और सेना की चौकसी। जिस ओर से भी कार्यवाही तेज़ होती उसके लिए आक्रोश बढ़ता जाता कभी आतंकवादियों के लिए तो कभी सेना के लिए। धर्म अपनी प्रकृति के विरुद्ध उनकी सोच को अतिवादियों की ओर मोड़ ही लेता था और ऐसे में सेना के प्रति उनका आक्रोश स्थाई भाव होता जा रहा था।
देश के जवान हमारी सुरक्षा के लिए अपना घर -बार त्याग कर स्वयं को तिरोहित करते रहते है लेकिन कभी -कभी उनकी उपस्थिति खासकर सरहदों पर तकलीफ देह साबित होती हुई आक्रोश बन कर जमती जाती है लेकिन वक्त पड़ने पर उनका योगदान के प्रति समस्त आक्रोश श्रद्धा बनकर आँखों से बाहर निकलना सराहनीय लेखन हुआ है आपका आदरणीया कविता जी . इस सार्थक लघुकथा के लिए ह्रदय से बधाई प्रेषित है . स्वागत आपका !
आभार कांता जी आपके सहयोग से इसे प्रकाशित कर सकी।
बहुत सजीव चित्र खींचा है आपने ऐसी स्थिति के बारे में, और अंत बहुत बढ़िया है| बहुत बहुत बधाई आपको
आभार विनय कुमार सिंह जी आपका प्रोत्साहन लेखन को आगे बढ़ाने में प्रेरक का कार्य करेगा
आदरनीय कविता वर्मा जी आप ने बहुत ही उम्दा व सजीव वर्णन किया है, बधाई आप को .
आभार ओमप्रकाश क्षत्रिय जी इस प्रोत्साहन के लिए
बहुत अच्छा प्रयास है आ० कविता वर्मा जी, बधाई स्वीकार करेंI जिस प्रकार आपने यह लघुकथा प्रस्तुत की है, उसे सपाटबयानी कहते हैंI अर्थात इसमें जो कुछ कहा गया है वह लेखक ने स्वयं कहा है, जबकि लघुकथा में काफी कुछ पात्रों/परिस्थितिओं के माध्यम से कहा जाना चाहिएI आशा है कि भविष्य में आप इस बात का ध्यान रखेंगीI
जी योगीराज सर बहुत दिनों बाद लघुकथा लिख रही हूँ हुआ आपने कथा को समय देकर आकलन किया और गाइड किया आभारी हूँ। आगे सुधार करने की कोशिश करूंगी
वाह | बहुत बढ़िया कथा हुई है | बधाई स्वीकारें |
सरहद में सेना के प्रति ये आक्रोश देखा जाता है और सेना वहां रक्षा के लिए दिन रात लगी रहती है ,कथा का विषय अच्छा लिया है आपने ,, हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीया कविता वर्मा जी
आ. कविता जी लंबे अंतराल के बाद आपको पढना सुखद रहा. बधाई आपको
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