आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी!
बहुत ही शानदार लघुकथा लेखन हुआ है आपका आदरणीय जवाहरलाल जी ,अच्छा लगा पढ़कर .बधाई प्रेषित है .
उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीया कांता रॉय जी!
आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको ।
उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीया नयना जी!
हार्दिक आभार आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी!
वाह | बहुत सुंदर कथा हुई है आदरणीय जवाहर लाल जी | बधाई स्वीकारें |
उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीया कल्पना जी!
नानू के मन में आक्रोश:
सात वर्षीय नानू के मन में आक्रोश भरा था। वह अपनी माँ से शिकायत किए बिना नहीं रह सका, "माँ, मैंने चाचा को गौशाले में दूध दुहने के बाद पूरी गिलाश भरी दूध अपने बेटे मानू को पिलाते हुए देखा।"
चाची के अचानक देहांत के बाद चाचा काफी दुखी रहते थे। उनके दोनों बच्चों के भरण - पोषण की जिम्मेवारी भी, बड़ी होने के कारण नानू की माँ और पिताजी पर ही आ पडी थी। चाचा पर गायों को खिलाने और दूध निकालने की ज़िम्मेवारी थी।
पूरे परिवार को एक सूत्र में बांधे रखकर आगे बढ़ाने की जिम्मेवारी नानू की माँ ने बखूबी अपने ऊपर ले ली थी। नानू ने तो सच्चाई जान ही ली थी। अपने बेटे के मन में संदेह के अंकुर को पनपने से पहले ही उखाड़ने की कोशिश करते हुए नानू की माँ ने कहा, "नानू, मानू की माँ नहीं है न, इसलिए गाय की दूध पहले उसे ही देना जरूरी है, समझ गए न।"
छोटा नानू इस उत्तर से निरुत्तर - सा हो गया। पर नानू की माँ ने बच्चे के मन से विभेद के भाव को मिटाकर पारिवारिक सम्बन्धों में संदेह के तंतुओं को बढ़ने से रोक दिया था। छोटी - छोटी बातों का ख़याल रखकर ही रिश्तों की डोर को मजबूत बनाते हुए संयुक्त परिवार के ढाँचे को कायम रख जा सकता है।
(मौलिक व अप्रकाशित)
आदरनीय ब्रिजेन्द्र जी आप ने बहुत सुंदर लघुकथा लिखी है. अंतिम पंक्ति के बिना भी लघुकथा अपना अर्थ दे रही है. सादर.
आदरणीय ओमप्रकाश जी, आपने मेरी लिखी लघुकथा पढ़ी, मेरे लिए यही बहुत बड़ी बात है. आपके बहुमूल्य सुझाव मेरे लिए मार्गदर्शन का काम करेंगे. आभार...
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