आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आपकी ज़र्रानवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया भाई विनय कुमार सिंह जीI
माँ के लिए घरवालों से मोर्चा लेना ,ये बेटी ही करती है अक्सर घरों में हार्दिक बधाई इस सुन्दर रचना के लिए आदरणीय योगराज प्रभाकर जी सादर
हार्दिक आभार आ० प्रतिभा पाण्डेय जीI
गज़ब की रचना हुई है आदरणीय सर | तेज़ी से डिब्बा खोलकर नमक की दो मुट्ठियाँ दोनों डोंगों में खली कर दी | गज़ब की पञ्च लाइन हुई है और आक्रोश भी | सर बधाई स्वीकारें |
शुक्रिया माननीया कल्पना भट्ट जीI
हार्दिक आभार आ० डॉ बिजय शंकर जीI
धन्यवाद भाई महेंद्र कुमार जीI
आ. योगराज सर जी बधाई आपको इस सार्थक लघुकथा के लिए .ओ! हो! नमक डालकर अपना आक्रोश तो कोमल उडेल चूँकी लेकिन बाद मे उसकी माँ के सर ही चढने वाला ये कैसा आक्रोश .
आक्रोश कभी सोच समझ कर भी होता है? लावा क्या फूटने से पहले इसकी परवाह करता है कि उसके फटने से क्या और कितना नुकसान होगा?
सच कहा आपने.बेकाबू गुस्सा ही आक्रोश है. सादर
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