For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नारी तू नारायणी (उलाला छंद)/सतविन्द्र कुमार

नारी भारत में कभी,पाती थी सम्मान को
उसको थे सब पूजते,रखते उसके मान को
कष्ट बहुत सहने पड़े,कालांतर में नार को
कमतर था समझा गया, दुर्गा के अवतार को।

फिर नारी ने भी सही,दी खुदको पहचान है
आदिकाल से ही रही,नारी की तो शान है
सूया-सीता रूप में,नारी पर अभिमान है
जीजा माँ ,दुर्गावती,भारत-भू की आन है।

मातृशक्ति है जो बनी,नारी जीव महान है
जिसके आँचल में पले, पाती सुख संतान है
हर सुख अपने छोड़ दे,ममता-गुण की खान है
हे देवी! हम मानते, नारायणी समान है।

मौलिक एवम् अप्रकाशित

Views: 1082

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 19, 2016 at 6:33am
प्रोत्साहन एवम् मार्गदर्शन के लिए कोटिशः आभार श्रद्धेय सौरभ पाण्डेय जी।मैं परिष्कार का प्रयास करूँगा।सादर नमन

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 18, 2016 at 10:41pm

आदरणीय सतविन्द्र जी, उल्लाला छन्द पर बहुत अच्छा प्रयास किया है आपने. आपने पदान्त की तुकान्तता का निर्वहन किया है.  कतिपय छन्दकार चरणबद्ध तुकान्तता का भी निर्वहन करते हैं. बहुत-बहुत बधाइयाँ. 

वैसे,  अवतार पुल्लिंग शब्द है. 

तथा,

सूया-सीता रूप में,नारी पर अभिमान है
जीजा माँ ,दुर्गावती,भारत-भू की आन है। ...

दूसरी पंक्ति बहुवचन की होगी. अतः तुकान्तता है और हैं हो कर भिन्न हो जा रही है. 

शुभेच्छाएँ 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 18, 2016 at 9:02pm
अनुमोदन कर प्रोत्साहित करने के लिए सादर हार्दिक आभार संग नमन आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी।सादर वन्दे।
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 18, 2016 at 6:57pm

आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी सादर, उल्लाला छंद की सुंदर प्रस्तुति. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
16 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
23 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
23 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service