आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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//उसकी प्लेट में संतोष रखा था।// वाह! हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय सुनील जी, सादर!
भृत्य का बेटा
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निष्ठा और ईमानदारी से प्रभावित होकर अफसर ने कार्यालय के भृत्य के रिटायर होने के बाद उसके बेरोजगार लड़के को वन विभाग के स्थानीय चेक पोस्ट पर बैरियर बंद करने और खोलने के काम पर लगवा दिया जहाॅं पर दो फारेस्ट गार्डों की चेकिंग ड्युटी थी। आठ घंटे की ड्युटी के स्थान पर बारह घंटे रुकना पड़ता। डयुटी के दौरान फारेस्टगार्ड ही वाहनों की चेकिंग करते और उन्हें अनधिकृत माल को बैरियर से बिना कार्यवाही के निकाल देने के बदले में प्रति ट्रक तीन सौ से चार सौ रुपये तक मिल जाते जिसमें से रेंजर का हिस्सा अलग करने के बाद लड़के को एक सौ रुपये प्रति दिन देकर शेष राशि को दोनों बराबर बराबर बाॅंट लेते ।
एक दिन कुछ देर के लिये वह लड़का अकेला ही ड्युटी कर रहा था कि एक बूढ़ी भैसों से भरा ट्रक आया , उसने जांच के लिये बैरियर लगाया, ड्राइवर ने फौरन चारसौ रुपये उसे दिखाये पर उसने ट्रक में भरे माल से संबंधित पूरे कागजाद न पाये जाने के कारण आगामी कार्यवाही के लिये पुलिस को सौंप दिया, इतने में ड्युटी वाले दोनों फारेस्टगार्ड आ गये । वे , उसको बहुत डाॅंटते हुए बोले -
‘‘अबे, कैसी मूर्खता करता है! अब पुलिस वाले उससे एक हजार रुपये लेकर अंत में छोड़ ही देंगे ना ! तुम्हें क्या मिलेगा? अपना तो चार सौ रुपया प्रति ट्रक फिक्स है, ले लेते , इसी से तो तुम्हें वेतन मिलता है?''
‘‘ लेकिन सर! उसमें तो बूढ़ी भैसें थीं जो वे कानपुर शहर में उन्हें कटने के लिये, बेचने ले जा रहे थे''
‘‘ तो! तुम्हारा क्या चला जाता?? पूरे देश में यही हो रहा है, गायें हों या भैसें जब तक दूध देती हैं तब तक सब ठीक, बाद में कसाई को ही बेचा जाता है, क्या यह तुम्हें मालूम नहीं है?''
यह सुनकर वह तत्काल दुखी मन से अपने घर आकर एक ओर उदास बैठ गया। उदास बैठा देख उसके पिता ने पूछा-
‘‘क्यों बेटा! क्या बात है, आज तो जल्दी आ गये, तबियत खराब है क्या?''
‘‘नहीं , अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिये घर वापस आ गया हॅूं और सोचता हूँ कि पिछले सात आठ दिन में जो कुछ इस काम से कमाया है उससे भिखारियों को भोजन करा दॅूं और किसी सात्विक कार्य की तलाश में जुट जाऊं।''
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मौलिक और अप्रकाशित
यदि आज का हर युवा ऐसा ही संकल्प ले ले तो देश से भ्रष्टाचार का नामोनिशान मिट जाएगा किन्तु ऐसे निष्ठावान और ईमानदार माता पिता की औलाद के स्वभाव में ही ये संकल्प आ सकते हैं क्यूंकि बच्चा सब घर से ही सीखता है जैसे इस लघु कथा का नायक |
इस संदेशपरक लघु कथा के लिए बहुत बहुत बधाई आद० सुकुल जी |
कथा में कहे गए सार तत्व को अपने भावों में प्रकट करते हुए की गयी प्रशंसा के लिए विनम्र आभार आदरणीया राजेश जी।
अच्छी और सन्देश परक लघुकथा है आ०. डॉ टी आर सुकुल जी, थोड़ी और कसी जाती तो आनंद आ जाता। बधाई प्रेषित है।
आपको कथा पसंद आयी आदरणीय योगराज जी इससे मन प्रसन्न हुआ। सुझाव के लिए विनम्र आभार।
जनाब टी आर शुक्ल साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती तथा सीख देती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
कथा की प्रशंसा करने हेतु विनम्र आभार आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहेब।
ये माँ बाप के ही दिए संस्कार होते हैं जब कुछ बच्चे ' सब चलता है ,कुछ फर्क नहीं पड़ता ' वाले इस युग में भी जमीर बचा लेते हैं, प्रदत्त विषय पर सार्थक कथा का अच्छा ताना बाना बुना है आपने हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय सुकुल जी ...सादर
कथा में कहे गए सार तत्व को अपने भावों में प्रकट करते हुए की गयी प्रशंसा के लिए विनम्र आभार आदरणीया प्रतिभा जी।
आदरणीय सुकुल जी !
लघुकथा का विषय सामयिक है और प्रेरणा दायक है | अगर आज की पीढ़ी इमानदारी को अपना ले तो समाज से भ्रष्टाचार दूर होने में देर नहीं लगेगी | बधाई स्वीकार करें |
आदरणीय कालीपद प्रसाद जी , कथा की प्रशंसा में आपके मनोभावों से संतोष हुआ , विनम्र आभार।
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