आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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धन्यवाद, आदरणीय बबीता जी ।
हार्दिक बधाई आदरणीय पवन जी! बेहतरीन प्रस्तुति!
आभारी हूँ आदरणीय तेज वीर सिंह जी ।
राहुल जैसे ही आफिस से आया तो पत्नी से पता चला कि मां - बापू ने फिर दिल्ली जाने से मना कर दिया है। सुनते ही राहुल आग बबूला हो गया।
''आखिर क्यों नहीं जाना चाहते आप। कब तक किराए के मकान में हम सब अपनी जिंदगी गुज़ारेंगे। '' राहुल चिल्लाते हुए बोला।
''अरे वहां बेटी जंवाई बैठे हैं , उन्हीं कैसे निकाल दूं ?'' बापू ने भी गुस्से में जवाब दिया।
''मैं नहीं जानता। आप वहां जाओ और वहां के मकान को बेच कर यहां मकान बनाओ। बेटी को भी सोचना चाहिए मां-बाप किराए के मकान में दुःख पा रहे हैं और उसे कोई चिंता ही नहीं। '' राहुल ने भी क्रोधित हुए कहा।
मां-बापू उसके क्रोध की अग्नि से भयभीत हो रहे थे। रात देर तक राहुल क्रोध में रसोईघर में बर्तनों को जोर जोर से इधर उधर फैंकता रहा।
पत्नी राहुल को जबरदस्ती पकड़ कर अपने कमरे में ले गयी और समझाने लगी । '' क्या कर रहे हो ? मां-बापू की अवस्था देखो। उनकी मजबूरी है। तुम क्यों नहीं समझते। ''
'' अरे ये सब ढोंग है। ये जाना ही नहीं चाहते। बस बेटी का दुःख नज़र आता है। बेटा गया भाड़ में। '' राहुल तैश में बोले जा रहा था।
रात गुज़री। मां-बापू ने सवेरे बिना कुछ खाये पिए दिल्ली जाने का निर्णय ले लिया। ऑटो बुलाया। क्रोधवश बेटे से बिना कुछ बोले ऑटो में बैठ गए। मां-बापू को जाते देख राहुल अचंभित हो गया। गुस्सा उतार चुका था। द्रवित आँखों में ममता टपकने लगी थी। ऑटो तक दौड़ कर वो मां से लिपट कर रो पड़ा।
'' मां-बापू मुझे माफ़ कर दो। '' राहुल ने रोते हुए कहा।
''बेटे ख़ुश रहो। मैं अपने साथ कुछ नहीं ले जा रही। अपना ध्यान रखना। बच्चों को मारना मत। '' मां ने राहुल के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा और ऑटो चल दिया।
८-१० दिन बीते ,मकान बिकने की खबर आई। मगर मां-बापू से कोई बात नहीं हो पाई। दो दिन के बाद अचानक खबर आई कि मां सब को छोड़ गयी।
राहुल पत्थर हो गया। इन सब का ज़िम्मेदार खुद को मानने लगा। दिल्ली पंहुचा। मां के स्थान पर मां की देह थी। बहुत रोया मगर देह शांत थी। बापू अकेले हो गये। पुराना मकान बिक गया मगर नए मकान में रहने वाला चला गया। पश्चाताप की आग में राहुल जलता रहा। इसका कोई प्रायश्चित न था।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
कथा का शीर्षक तो दे देते सरI और हाँ लेखक को अपना नाम रचना के साथ नहीं देना है - ऐसा उद्घोषणा मेंसाफ़ साफ लिखा हैI रचना पर बात कल करूंगाI आ० कल्पना भट्ट जी की बात पर गौर अवश्य करेंI
आदरणीय योगराज सर प्रस्तुति पर आपकी उपस्थिति का दिल से आभार। आपके पुनः आगमन का इंतज़ार रहेगा। आपके द्वारा इंगित त्रुटियाँ भविष्य में नहीं दोहराई जाएंगी।
आदरणीय विजय शंकर जी प्रस्तुति के भावों को मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय उस्मानी जी प्रस्तुति पर आपकी स्नेहिल उपस्थिति का दिल से आभार। आपके सुझावों का हार्दिक आभार। हर सुझाव सृजन को नयी राह से अवगत कराता है। हार्दिक आभार।
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