आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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कथा की प्रशंसा के लिए विनम्र आभार, आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी साहेब ।
प्रस्तुत लघुकथा सार्थकता से प्रदत्त विषय को संतुष्ट कर रही है। /अबे, कैसी मूर्खता करता है! अब पुलिस वाले उससे एक हजार रुपये लेकर अंत में छोड़ ही देंगे ना ! तुम्हें क्या मिलेगा?/ यह एक पंक्ित पूरे भ्रष्ट तंत्र की पोल खोलने में सक्ष्म दिखाई दे रही है। /लेकिन सर! उसमें तो बूढ़ी भैसें थीं जो वे कानपुर शहर में उन्हें कटने के लिये, बेचने ले जा रहे थे/ इस पंक्ित में 'कानपुर' का नाम न लिखकर 'शहर' में उन्हे कटने के लिये होना चाहिए था जिससे लघुकथा का दायरा विशाल होता। इसी प्रकार 'पूरे देश में यही हो रहा है' के स्थान पर 'यही होता है गायें हों या भैसें.....' करना उचित होता । बहरहाल ! इस मेरी ओर से सादर शुभकामनाएं निवेदित हैं ।
आदरणीय रवि प्रभाकर जी , कथा को पसंद करते हुए अपने अमूल्य सुझाव देकर प्रोत्साहित करने के लिए विनम्र आभार।
आ. टी.आर सुकुल जी बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको सामयिक रचना के लिए
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ टी आर शुक्ल जी!बहुत सुंदर संदेश देती लघुकथा!
विनम्र आभार,आदरणीय तेजवीर सिंह जी।
विनम्र आभार आदरणीया नयना (आरती) जी।
विनम्र आभार,आदरणीय सतविंदर जी।
विनम्र आभार,आदरणीया कल्पना जी।
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