आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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कन्फ़ेशन
"फ़ादर! मुझे एक कन्फ़ेशन करना है।" बहुत देर से चर्च में बैठे उस व्यक्ति ने पादरी से कहा।
"बोलो माय सन।"
"मैं एक ख़ूनी हूँ।"
"किसका ख़ून किया है तुमने?" पादरी ने जिज्ञासा व्यक्त की।
"मैं नहीं जानता, वो बाइक से थे और मैं अपनी कार से, पर मेरी गलती की वजह से उनकी जान चली गयी।"
"लेकिन तुमने ऐसा जानबूझ कर तो नहीं किया।"
"मैं शराब पी कर गाड़ी चला रहा था।" उसने बात को स्पष्ट करने की कोशिश की।
"हूँ... कोई बात नहीं सन। गॉड इज़ वैरी काइंड।" पादरी ने सांत्वना देते हुए कहा।
"पर मेरी सिर्फ़ इतनी ही गलती नहीं है। मैं एक प्रोफ़ेसर भी हूँ।"
"ये तो अच्छी बात है।"
"नहीं, ये अच्छी बात नहीं है।" उसके स्वर में दृढ़ता थी।
"क्यों?"
"क्योंकि शिक्षण एक पवित्र कार्य है। वहाँ मुझ जैसे हत्यारे और पापी व्यक्ति का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।"
"तुम अपने आप को दोष क्यों दे रहे हो?"
"क्यों न दूँ? एक तरफ़ आप हैं, बेदाग़ चरित्र वाले, और दूसरी तरफ़ मैं। आप अपने प्रोफ़ेशन को कितना सीरियसली लेते हैं, उसके लिए फिट हैं, मैं नहीं। मैं बच्चों को जिस नैतिकता का पाठ पढ़ाता हूँ स्वयं ही उसका पालन नहीं करता। मैं इन सब का प्रायश्चित करना चाहता हूँ... मर कर!"
"ऐसा नहीं कहते सन! आत्महत्या भी पाप ही है। और फ़िर तुमसे किसने कह दिया कि मैं बेदाग़ चरित्र वाला हूँ? मैं एक लुटेरा था, निर्मम लुटेरा। लूट के लिए हत्याएँ भी करनी पड़ें तो संकोच नहीं करता था। पुलिस मेरे पीछे पड़ गयी थी। उससे बचने के लिए मैं पादरी बन गया। धीरे-धीरे मुझे लगा कि शायद यही मेरी नियति है, यही मेरे पापों का प्रायश्चित है। मैंने जो लूट और हत्याएँ की थीं वे सब जानबूझ कर की थीं पर तुमसे तो जो हुआ वो अनजाने में हुआ है। इसलिए जो हो गया उसे भूल जाओ। तुम्हारे आगे पूरा जीवन पड़ा है।"
"उन लोगों के आगे भी पूरा जीवन पड़ा था जो मेरी गाड़ी से मरे थे और जिनकी आपने हत्याएँ की थीं।" उसके चेहरे के भाव अब बदल रहे थे।
"तुम सही कह रहे हो सन पर ईश्वर परम दयालु है। वह प्रायश्चित करने वालों को माफ़ कर देता है। तुम बच्चों को ऐसी शिक्षा दो कि वे जीवन में कोई भी गलत काम न करें। यही सच्चा प्रायश्चित होगा।"
"ईश्वर मर गया है फ़ादर! उसे प्रायश्चित वालों ने मार दिया है... आप जैसे करने और कराने वालों ने।" उसने पादरी की आँखों में आँखें डालते हुए कहा।
अगले दिन अख़बारों की प्रमुख़ हेडलाइन थी -"शहर में सीरियल किलर की दस्तक! लगातार तीसरे पादरी की निर्मम हत्या!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी, प्रस्तुति को पसंद करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार! जहाँ तक कथानक की बात है तो मैंने ऐसा कोई वाकया पहले पढ़ा या सुना नहीं है। यदि आपकी जानकारी में ऐसा कुछ हो तो कृपया साझा करें। सादर!
//"ईश्वर मर गया है फ़ादर! उसे प्रायश्चित वालों ने मार दिया है... आप जैसे करने और कराने वालों ने।" उसने पादरी की आँखों में आँखें डालते हुए कहा//।
शुरू में कुछ उपदेशात्मक से लगी इस प्रस्तुति ने अंत में झटका दिया बधाई आपको आ० महेंद्र भाई
हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी, सादर!
रचना के विषय को यदि देखा जाये तो काफी प्रभावी है लेकिन भाई महेंद्र जी रचना को इतना विस्तार ने देकर यदि आपने वार्तालाप को सीमित कर के अंतिम पंच लाइन के मद्देनजर ही अपना ध्यान केंद्रित किया होता तो रचना और अधिक प्रभावी बनती बहरहाल मेरी ओर से बढ़िया कथा के लिए सादर बधाई स्वीकार करे। सादर।
आदरणीय भाई वीरेंदर जी, रचना को पसंद करने और उस पर अमूल्य सुझाव देने हेतु आपका हार्दिक आभार, सादर!
आखिरी लाइन ने झंझोड़ दिया, इस लघुकथा हेतु दिली बधाई कबूल फरमायें।
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय राम शर्मा जी, सादर!
आ. महेन्द्र कुमार जी आपका कथानक और कथ्य बहूत ही शानदर है बस इसके भाव ना जाते हुए कम संवादो मे कैसे प्रस्तुत हो इस पर गुरुजनो और वरिष्ठों की सलाह पर काम करे. पंच पक्ति नि:संदेह एकदम मारक है. बधाई आपको
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