आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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दिल से शुक्रिया आपका _/\_
दिल से शुक्रिया आपका _/\_
दिल से आभार आपका _/\_
हार्दिक बधाई आदरणीय सविता जी ! बेहतरीन प्रस्तुति!
"//मेरे कहने से तो सुने न कभी ! अच्छा हुआ जो पोते ने चोट दी! अब उसकी दी हुई चोट की ओट में जमीन की खोट दूर हो जाएँगी | कितनी बीघे जमीन बंजर होने को थी // सामयिक विषय को उठाते हुए क्या खूब कथा कही है आपने ..हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया सविता मिश्रा जी
आ.सविता जी बहुत ही सामयिक बात कही है आपने. वाकई पुरखों की संपत्ति को हम तो ना बचा पाए शायद, पर नई पीढी की जागरुकता मैने कई बार देखी है.बधाई संदेश देती इस रचना के लिए.
बहुत बहुत आभार आपका |
अच्छा प्रयास सविता मिश्रा जी, मगर मज़ा नहीं आयाI और मेहनत करें, भाषा और व्याकरण पर ध्यान दें
कोशिश करते फिर से भैया ...वैसे तो तीन चार बार पढ़ भलीभाती देख यहाँ परोसे थे पर फिर भी बनी न ...आभार आपका समय दे मार्गदर्शन करने के लिए ..सादर नमस्ते भैया
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