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1222,1222,1222,1222

कभी छाया मिली गहरी ,कभी फिर धूप पड़ती है
चले जीवन सही साथी,नहीं मुश्किल अकड़ती है

जमाना ये उसे चाहे दुखों को जो भुलाता है
सतत बढ़ता चला जाए नहीं खुद को रुलाता है
मुसीबत को बहुत छोटी,समझ कर जो चला जाए
खुदा देखो उसे ही तो ज़माने में सदा लाए
नहीं तो देख लो कितनी यहाँ पर उम्र झड़ती है
चले जीवन सही साथी,नहीं मुश्किल अकड़ती है।1।

मुहब्बत एक प्यारा सा ख़ुशी का ही खज़ाना है
इसी को पास रखकर ही हमें जीवन बिताना है
तुझे बस पास ही देखूँ हमेशा साथ ही पाऊँ
चलूँ जब छोड़ दुनिया को यही इक आस मैं लाऊँ
मुहब्बत हो सलामत तो,दुखों से देख लड़ती है
चले जीवन सही साथी,नहीं मुश्किल अकड़ती है।2।

नहीं होती कभी कोई सही ही जिंदगी उनकी
डरों के साथ रहती है सदा ही बन्दगी जिनकी
जिए जाते वही बस शान से जो हैं नहीं डरते
अमरता ही उन्हें मिलती दिलों में वे नहीं मरते
हुए काबिल जगति ये मनों में मान गढ़ती है
चले जीवन सही साथी,नहीं मुश्किल अकड़ती हैै।3।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 6, 2016 at 4:53pm
आदरणीय सुशील सरना। जी प्रोत्साहन के लिए सदर हार्दिक आभार संग नमन।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 6, 2016 at 4:51pm
प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीया कल्पना दीदी।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 6, 2016 at 4:49pm
सादरश्रद्धेय सौरभ पांडेय जी आपका प्रयास पर उपस्थित होकर प्रोत्साहित करना सदैव ऊर्जा प्रद है।सादर हार्दिक आभार।कमियों पर पार पाने का समुचित प्रयास करूँगा।सादर नमन
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 6, 2016 at 4:47pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन के लिए सादर हार्दिक आभार संग नमन।मैं त्रुटियों पर पार पाने का समुचित प्रयास करूँगा।सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 6, 2016 at 1:54pm

आदरणीय सतविन्द्र जी, आपकी रचना प्रक्रिया और तदनुरूप अभ्यास वाकई प्रभावकारी है. यह प्रयास बना रहे. आदरणीय समर साहब के कहे से मैं भी सहमत हूँ. उक्त पंक्तियों को देख लीजियेगा. 

लगन लगी रहे, अभ्यासकर्म बना रहे.. शुभेच्छाएँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 6, 2016 at 9:51am

आदरणीय विधाता छंद मे अच्छी रचना हुई है , बधाई आपको ।
निम्न को जाँच लीजियेगा ।
संग - की मात्रिकता ?
नहीं होती है कभी कोई सही सी जिंदगी उनकी ----  इस पंक्ति की मात्रिकता

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 5, 2016 at 11:00pm
अनुमोदन,प्रोत्साहन व मार्गदर्शन के लिए सादर हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर जी।नमन
Comment by Sushil Sarna on August 5, 2016 at 7:27pm

 बहुत सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय। 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 5, 2016 at 4:58pm
अच्छा प्रयास आदरणीय सतविंदर भैया । बधाई।
Comment by Samar kabeer on August 5, 2016 at 3:27pm
जनाब सतविंदर कुमार जी आदाब,बहुत अच्चा गीत रचा है आपने बधाई स्वीकार करे ।
दूसरे बन्द का पांचवां मिसरा और तीसरे बन्द का पहला मिसरा लय में नहीं लगता कृपया देखिएगा ।

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