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 पास ही  की झुग्गी के  बच्चे और यहाँ तक की कुत्ते भी अचानक से उस और दौड़ पडे .
"अरे मुन्ना! वो देख जा जल्दी बहुत सारा खाना आया दिखता है." लूली ने जोर देकर अपने भाई से कहा और लंगडाते हुए वह भी दौडने का प्रयास करने लगी.
जिसके हाथ में जो आया लेकर भागने लगे थे की लूली के हाथ में आई रोटी का टुकड़ा एक कुत्ते के पिल्ले ने छिनकर दौड लगा दी.
खचाक!!! की आवाज़ के साथ गाड़ी रुकी.
दो मिनट मे ही कुई!कुई!कीआवाज बंद हो गई .
 डीजे का शोर, उस पर नाचती नौजवान पीढी. लक-दक कपड़ों मे सजे एक दूसरे से औपचारिकता निभाते  मेहमान . दूल्हा-दुल्हन की आठ इंची मुस्कान आशीर्वाद लेने मे मस्त. पांडाल की  गहमा-गहमी में किसी का ध्यान इस ओर नही था.

लूली मुन्ना का हाथ थामे लथपथ पडे पिल्ले के मुँह मे दबे रोटी के टुकड़े को निहार रही थी.

मौलिक एंव अप्रकाशित

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Comment by pratibha pande on August 26, 2016 at 10:11am

  झंक्झोरने वाली कथा हैI दो वर्गों के बीच की ये  खाई,  रोज़  बढ़ते जा रहे जुर्मों  की एक बड़ी  वजह  है I मेरी बधाई स्वीकार करें आप इस रचना पर आदरणीया नयना जी 


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Comment by rajesh kumari on August 25, 2016 at 11:11am

लघु कथा पढ़ते ही जिस बात ने मुझे रोका वो आद० समर भाई जी पहले ही कह चुके हैं की लूली हाथ से अपाहिज को कहते हैं इस कमी को आप निःसंदेह दूर कर लेंगी .लघु कथा में अमीरी गरीबी एवं भूख का वास्तविक चित्रण हुआ है दिल से बधाई आपको आद० नयना जी |

Comment by Manan Kumar singh on August 25, 2016 at 9:07am
कटु सत्य चित्रित हुआ है,बधाई आदरणीया।टंकणजनित भाषागत त्रुटियों का निराकरण अपेक्षित है,सादर।
Comment by Rahila on August 24, 2016 at 8:49pm
बहुत मार्मिक रचना आदरणीया दीदी!बहुत बधाई आपको ।सादर
Comment by नयना(आरती)कानिटकर on August 24, 2016 at 6:59pm
आ. समर कबीर जी आदाब --"लूली"हाथ-पैर दोनो से निशक्त है इसीलिए उसका नाम लूली पड गया था। शायद संप्रेषण मे यह बात उभर कर शहीं आ पाई। आपने रचना को पढ़कर अपना मत रखा इस हेतु आभार
Comment by Samar kabeer on August 24, 2016 at 3:00pm
मोहतरमा नयना जी आदाब,लघुकथा अच्छी है,बधाई स्वीकार करें ।
"लूली ने ज़ोर देकर अपने भाई से कहा और लंगड़ाते हुए वह भी दौड़ने का प्रयास करने लगी"
लूली तो उसे कहते हैं जो एक हाथ से अपाहिज हो,फिर वह लंगड़ाती हुई क्यों ?

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