आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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लघु कथा के मर्म तक पँहुच कर की गई आपकी इस प्रतिक्रिया का दिल से स्वागत करती हूँ दौलत की विरासत और संस्कारों की विरासत के अंतर को ही यहाँ दिखाने का प्रयास किया है दौलत की विरासत की चकाचौंध में तो हर कोई फँसता है किन्तु संस्कारों सीरत की और विरले ही आकर्षित होते हैं | जरूरी नहीं हम हमेशा नकारात्मक सोचें हमारी सकारात्मक सोच कुछ लोगों को प्रेरित कर पाए यही मेरी कथाओं का उद्देश्य होता है |
पुनः स्पष्ट करने हेतु आभार आपका
बिलकुल सही बात कही आपने आद० नीता जी यही इस कहानी के माध्यम से मैं कहना चाह रही हूँ आपको बहुत बहुत बधाई |
सुनील भैया ,सुनकर अफ़सोस हुआ कि आपको कहानी अपरिपक्व लगी खैर सबका अपना अपना नजरिया होता है समझने का |हाँ मैं मानती हूँ की शुरू में वर्णन (सम्वाद नहीं )थोडा लम्बा हो गया किन्तु संवासिनी बनने के कारण के पीछे उसके जीवन पर प्रकाश डालने के लिए कुछ मूलभूत बातों का बताना यहाँ जरूरी था | अभी दो तीन महीने पहले की ही ये देहरादून की सच्ची घटना है उसी में कुछ सकारात्मक अंत के बदलाव के साथ कहानी के कलेवर में इसको ढाला है| आपका बहुत बहुत आभार |
आदरणीया राजेश कुमारी जी, सुन्दर कथा है. लौट कर आता हूँ. सादर.
आद० शुभ्रांशु भैय्या आपको कहानी अच्छी लगी आपका बहुत बहुत आभार |
आद० कल्पना भट्ट जी, आपको लघु कथा पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया |
आपकी इस प्रतिक्रिया का दिल से स्वागत करती हूँ दौलत की विरासत और संस्कारों की विरासत के अंतर को ही यहाँ दिखाने का प्रयास किया है दौलत की विरासत की चकाचौंध में तो हर कोई फँसता है किन्तु संस्कारों सीरत की और विरले ही आकर्षित होते हैं | जमाने में हर तरह के लोग हैं जरूरी नहीं हम हमेशा नकारात्मक ही सोचें हमारी सकारात्मक सोच कुछ लोगों को प्रेरित कर पाए यही मेरी कथाओं का उद्देश्य होता है |
जाने कहाँ गयीईईईईईई ......मेरी पहली टिप्पणी ??? एनी वे दुबारा ..
आपको कथ्य ,लेखन ,सम्प्रेषण सब पसंद आया जिसके लिए दिल से आभार आद० कांता जी | क्या होता है कांता जी हम आज के परिवेश में संवेदनहीनता को देखने के इतने आदि हो चुके कि सकारात्मकता की तरफ़ हम सोच ही नहीं सकते हाँ फिल्मों में देखने को मिलता है |किन्तु वास्तविकता में भी दुनिया में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो सूरत की जगह सीरत को चुनते हैं दौलत/एकाकीपन की जगह प्यार स्नेह को चुनते हैं बस इसी मर्म के आलोक में मेरी रचना दुबारा पढ़ जाइए सब स्पष्ट हो जाएगा |कुछ बड़ी अवश्य हो गई पर सच मानिए ये सब बातें इसमें आनी बहुत जरूरी थी | आपका बहुत बहुत आभार |
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आद० कांता रॉय जी, आपको लघु कथा पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया | आपको इसमें फ़िल्मी टच इसलिए लगा कि आज के माहौल को देखते हुए हम सोच ही नहीं पाते कि क्या वास्तव में ऐसे लोग हो सकते हैं आज के ज़माने में जो दौलत ठुकराकर दूसरों की सेवा में लग जाए या दौलत से ज्यादा सीरत को चुने किन्तु ऐसा पूर्णतः भी नहीं है आज भी इस तरह के लोग मिल जाते हैं |
ये देहरादून में हुई दो तीन महीने पहले की एक सच्ची घटना पर आधारित है जिसको सोद्देश्य एक सकारात्मक परिधान से सजाकर मैंने पेश किया है| दौलत की विरासत और संस्कारों की विरासत के अंतर को ही यहाँ दिखाने का प्रयास किया है दौलत की विरासत की चकाचौंध में तो हर कोई फँसता है किन्तु संस्कारों सीरत की और विरले ही आकर्षित होते हैं | जमाने में हर तरह के लोग हैं जरूरी नहीं हम हमेशा नकारात्मक ही सोचें हमारी सकारात्मक सोच कुछ लोगों को प्रेरित कर पाए यही मेरी कथाओं का उद्देश्य होता है |