आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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स्त्री जीवन की विडम्बना को परिभाषित करते हुए आपने निज स्वार्थ में डूबे हुए पात्रों को बहुत ही सधे हुए तरीके से दिखाया है कि कैसे वे अपने संवेदनहीनता की पराकाष्ठा को पहुंचते है .ये भी हमारे समाज का एक वीभत्स रूप है जो हमारे चारों ओर दोहरा चेहरा लगाये हुए है . आपकी लेखन शैली यहाँ सधी हुई है और कथ्य भी खूब स्पष्ट हुआ है . बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया जानकी जी .
बहुत ही उम्दा लघुकथा है आ० जानकी वाही जी, मानवीय असंवेदनशीलता की क्रूर तस्वीर पेश की हैI अनेकों प्रश्नचिन्ह उठाती इस लाजवाब लघुकथा के लिए ढेरों ढेर बधाई स्वीकार करेंI
रचना की अंतिम पंक्ति ने रिश्तों पर कई प्रश्चिन्ह लगा दिए हैं समय कितना भी बदल जाए ये प्रश्न हमेशा अनुत्तरित ही रह जाते हैं ..सार्थक रचना के लिए ढेरों बधाई प्रेषित है आदरणीया जानकी जी
आदरणीया जानकी जी, आपने बहुत ही संवेदनशील कथानक चुना है और उसे लघुकथा के रूप में शाब्दिक करने के क्रम में एक विशिष्ट प्रस्तुति दी है. वास्तव में नारी जीवन की विडम्बना को उभारने में लघुकथा सफल है. इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर
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