आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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बहुत ही सुंदर लघुकथा है भाई चंद्रेश कुमार छतलानी जी, बधाई स्वीकार करेंI
रचना और मुझे आपका आशीर्वाद मिला, मेरा यह लेखन सफल हुआ| सादर नमन आदरणीय योगराज जी सर|
//तो दोनों तरफ के लोग बापू के श्वेत-श्याम सपनों को रंगीन कर... अपनी-अपनी विरासत लेकर चले गये|//” बहुत सशक्त कथानाक और उतनी ही कुशलता से उसका निर्वहन ...बधाई स्वीकार करें इस बेहतरीन लघुकथा के लिए आदरणीय चंद्रेश जी
सादर आभार आदरणीया प्रतिभा पांडे जी, आपको लघुकथा का यह प्रयास ठीक लगा और आपने अपनी टिप्पणी द्वारा मेरा उत्साहवर्धन भी किया|
मोहतरम जनाब चंद्रेश कुमार साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
जनाब तस्दीक़ अहमद खान साहब, लघुकथा की इस कोशिश पर आपकी सराहना के लिये तहे दिल से शुक्रिया| आपके शब्दों से मेरा मनोबल बढ़ा है|
विलक्षण कथ्य गज़ब की सृजनशीलता । आपका कोई जबाब नहीं । आपकी कलाम का तोड़ नहीं । सदर नमन स्वीकार करें।
आदरणीय रतन राठौड़ जी सर, लघुकथा के इस प्रयास पर आपकी उपस्थिति, अनुमोदन और मेरे उत्साहवर्धन हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ| सादर,
हार्दिक आभार आदरणीया नीता जी, रचना के मर्म तक पहुँच कर आपने अपनी प्रतिक्रिया से मेरा मनोबल बढाया| आपने जो सन्देश कहा है, यही इस लघुकथा में कहने का प्रयास था| सादर,
"दोनों हाथों को जोड़ने की कोशिश में हर बार हाथ ही तो बंटे हैं|“ ..वाह्ह्ह्ह लाजबाब पंक्ति ..सच ही कह है इन दो हाथों का मिलान ये धर्म के ठेकेदार कहाँ होने देते हैं ऊपर से राजनीति उस आग पर अपनी रोटियां सेंकती हैं |
बापू की विरासत गलत हाथों में चली गई है | बहुत अच्छी लघु कथा लिखी है आद० चंद्रेश जी हार्दिक बधाई लीजिये
आदरणीया राजेश कुमारी जी, लघुकथा के इस प्रयास के मर्म तक पहुँच कर आपने सहृदयता से टिप्पणी कर मुझे और रचना को कृतार्थ किया है| आपका बहुत-बहुत आभारी हूँ|
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