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तन्हा रह जाता है ....

तन्हा रह जाता है ....

कल की तरह
ये आज भी गुजर जाएगा
स्मृतियों की कोठरी में
फिर कुछ और पल समेट जाएगा
हर कल के साथ
अपने अस्तित्व की शिला से
अपने अमिट होने का
दम्भ को पुष्ट करता रहेगा
हर कल का सूरज
अस्त्तित्वहीन होकर
किसी कल के गर्भ में
लुप्त हो जाएगा
क्या है जीवन
वो
जो गुजर गया
या वो
जो आज है
या फिर वो
जो आने वाले
काल के गर्भ में
सांसें ले रहा है
हर रोज़
इक मैं जन्म लेता है
हर बीते कल में
इक मैं का इज़ाफ़ा हो जाता है
लम्हा लम्हा
न जाने कब
मैं का अस्तितिव
कल के काल में समा जाता है
आज फिर आगे बढ़ जाता है
कल
अपने अस्तितिव की गठरी लिए
ज़िन्दगी की परछाई बन
तन्हा रह जाता है

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on September 6, 2016 at 1:30pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी प्रस्तुति पर अपना अमूल्य समय और सुझाव देने का तहे दिल से शुक्रिया। आपकी प्रतिक्रिया हर रचना को उत्साहित करती है।  आप जैसे गुणीजनों का सानिध्य मेरे लिए सौभाग्य की बात है। सर आपके द्वारा दिया सुझाव सुंदर है लेकिन मैं अपने सृजन में जिस शाब्दिक भाव को समेटने की कोशिश की है उसमें मुझे यथा स्थिति अधिक सही लगती है। आपके अमूल्य सुझाव का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2016 at 10:31am

आदरणीय , जीवन क्रम बयाँ करती आपको चिंतन के लिये हार्दिक बधाई । मै भी व्याकरण का बहुत जानकार नहीं हूँ पर शायद --
फिर कुछ और पल समेट जाएगा    -- सिमट जायेगा , या समेटा जायेगा , सही लगेगा ।

अपने अमिट होने का  --- होने के दम्भ को पुष्ट करता रहेगा  -- देखियेगा , अगर सही लगे तो ?

Comment by Sushil Sarna on September 4, 2016 at 11:26am

आदरणीया प्रतिभा जी प्रस्तुति में निहित भावों पर आपकी मुक्त कंठ प्रशंसा से रचना उपकृत हुई।  आपके इस स्नेह का दिल  से आभार। 

Comment by pratibha pande on September 3, 2016 at 9:27pm

मैं का अस्तितिव 
कल के काल में समा जाता है 
आज फिर आगे बढ़ जाता है 
कल 
अपने अस्तितिव की गठरी लिए 
ज़िन्दगी की परछाई बन 
तन्हा रह जाता है.....वाह ...बहुत   सुन्दर    समय के आने जाने बीत जाने को बहूत सुन्दर शब्दों में बाधा है आपने   हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीय सुशील सरना जी  

Comment by Sushil Sarna on September 3, 2016 at 6:37pm

आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति के भावों को अपनी स्नेहाशीष से जीवन्त करने के लिए हार्दिक आभार। 

Comment by Samar kabeer on September 3, 2016 at 3:14pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,ये कविता भी बहुत ख़ूब है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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