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चाँद की शक्ल में आ जाओ सहर होने तक,

ईद  हो  जाये  मेरी  आठ  पहर  होने    तक.

 

तुमको   आवाज़   भी  देती तो बताओ कैसे,

राह   मैं   तकती  रही पूरा सर होने तक.

जाने   कब   होगी सहर रात अभी बाक़ी है,

मर ही जाएँ न कहीं आज  सहर होने तक.

 

अश्क़   पलकों   की    मुंडेरों पे सजाऊँ कैसे,

सूख   जायेंगे  सभी तुझको ख़बर होने तक.

आप   आओ  तो सही आपकी रहमत होगी, 
आस   बाकी  है   बची मेरी गुज़र होने तक.

 

माँ   ने    जब दी है दुआ बद्दुआ कैसे होगी ,
हम भी बैठे  हैं दुआओं का असर होने तक.

....आभा 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

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Comment by Ashok Kumar Raktale on September 15, 2016 at 11:15pm

तुमको   आवाज़   भी  देती तो बताओ कैसे,

राह   मैं   तकती  रही पूरा सर होने तक........वाह ! खूब.

उत्तम गजल हुई है आदरणीया आभा सक्सेना जी. बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 15, 2016 at 10:54pm

बढ़िया  ग़ज़ल कही  है आभा जी हार्दिक बधाई |

माँ   ने    जब दी है दुआ बद्दुआ कैसे होगी ,
हम भी बैठे  हैं दुआओं का असर होने तक.---बहुत खूब 

 

Comment by ram shiromani pathak on September 14, 2016 at 8:46pm
बहुत सुंदर आदरणीया।बधाई
इसे और भी बेहतर कर सकती है आप।सादर
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 14, 2016 at 8:14pm
आदरणीया आभा सक्सेना जी सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।
Comment by Abha saxena Doonwi on September 14, 2016 at 8:07am

आदरणीय समर कबीर साहब जी नमस्कार ,

मैं प्रतिदिन कुछ अच्छा लिखने कि कोशिश करती हूँ ......और उसमें आपसे इस्लाह की  अपेक्षा भी करती हूँ ..ग़ज़ल और नवगीत के क्षेत्र में मैं अभी नयी हूँ  इसलिए गलतियाँ होना स्वाभाविक है ...आप इसी तरह स्नेह भाव बनाये रखेंगे ऐसी उम्मीद मैं आपसे करती हूँ ..आपने मेरी रचना को पढ़ा , सराहा मुझे अच्छा लगा बहुत बहुत आभार आपका .....

Comment by Samar kabeer on September 13, 2016 at 10:30pm
मोहतरमा आभा सक्सेना साहिबा आदाब,कमाल की ग़ज़ल हुई है,मुग्ध कर दिया इस ग़ज़ल ने वाह वाह वाह बहुत खूबसूरत और मुरस्सा क्या कहने,जितनी तारीफ़ की जाये कम होगी,अल्फ़ाज़ की बंदिश चुस्त,हर शैर पूरी रवानी से बह रहा है,शैर दर शैर दाद के साथ ढेरों मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

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