For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ये लो इस गद्दार की लाश" एक सैनिक उस घर के बाहर खड़ा होकर चिल्लाया| आवाज़ सुनकर मोहल्ले के लोगों की भीड़ जमा हो गयी|

"इनका परिवार पुश्तों से सेना में है और आखिरी वंशज गद्दार निकला" मोहल्ले के लोगों में फुसफुसाहट होने लगी|

उसका पिता सिर झुकाये चुपचाप घर से बाहर निकला| उसकी लाल आँखें और उतरा हुआ चेहरा बता रहा था कि कुछ रातों से वह सोया नहीं है|

"देश के लोगों के खून के साथ होली खेलनी थी ना, तो आज होली के दिन ही लाये हैं" दूसरा सैनिक तल्खी से बोला|

"अब इस पर हस्ताक्षर करो, और हमें छुट्टी दो..." पहले सैनिक ने एक कागज़ देते हुए सख्ती से कहा|

उसके पिता ने कागज़ लिया और एक दूसरा कागज़ उसके हाथ में थमाया, सैनिक ने आश्चर्य से देखा और उस कागज़ को पढने लगा, वो एक पत्र था,

"पिताजी, मेरे कमरे में जो सैनिक साथ रहता है, वह दुश्मन देश का एजेंट है| वह मेरे मोबाईल से दस्तावेजों के चित्र भेजता है, आज फोटो हटाना भूल गया तो मैनें पकड़ लिया, उसने मुझे धमकी दी है कि मुझे फंसा देगा| मुझे कुछ हो जाये तो आर्मी को सच बता देना|"

पत्र पढ़ते हुए सैनिक सोचने लगा कि मृतक के कमरे के साथी ने ही तो उसे गोली मारी और उसके फ़ोन में दस्तावेजों के चित्र दिखाये थे, जो विदेशों में भेजे जा रहे थे|

उसने लाश पर लपेटे हुए कपड़े को खोला और गाड़ी से तिरंगा निकाल कर उसे ओढ़ा दिया, तब उसने देखा कि गोली सिर पर लगी थी और लहू जम गया था, उसने वहाँ हाथ रखा, लहू पाउडर की तरह था| उसने उसे अपने हाथ में लिया और उससे उसके पिता को फिर खुदको तिलक लगाया और अपने साथी को कहा

"चल...! अब होली खेलने की बारी हमारी है|"

(मौलिक और अप्रकाशित)

 

Views: 517

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 24, 2016 at 10:52pm

सुंदर कथा | बधाई स्वीकारे |

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 2, 2016 at 1:06pm

आदरणीया  राहिला जी, आदरणीय राहुल डांगी जी, आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी, आप सभी का सादर धन्यवाद, आपकी लघुकथा का यह प्रयास ठीक लगा और आपने अपनी टिप्पणी द्वारा मेरा उत्साहवर्धन किया|

Comment by Shubhranshu Pandey on March 23, 2016 at 9:33pm

आदरणीय चन्द्रेश जी,

परिस्थितियों के वश में सही गलत का निर्धारण कठिन हो जाता है. सुन्दर कथा

सादर.

Comment by Rahul Dangi Panchal on March 21, 2016 at 1:23pm
भावुक कर दिया भैया जी आपने

जय जवान जय हिन्द जय भारत
Comment by Rahila on March 21, 2016 at 11:11am
ओह.. .कितना घिनौना सच!अपने ही देश से गद्दारी,लेकिन कब तक??जैसे यहां सच उजागर हुआ वैसे ही होता रहेगा । बहुत शानदार रचना आदरणीय सर जी!सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service