आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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अच्छी कथा पर थोड लम्बी हो गयी है | किताबी ज्ञान से किसीकी योग्यता या योग्यता का मूल्यांकन नहीं करना चाहिए | सच है | हार्दिक बधाई आदरणीय |
लघु कथा --सुख़नवर ( परदे के पीछे )
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शहर के सुचना केंद्र हाल में आज अखिल भारतीय मुशायरे का एहतमाम किया गया है ,देश के कोने कोने से मशहूर शोरा और ग़ज़लकार तशरीफ़ ला चुके हैं ,भीड़ इतनी कि लोग हाल के बाहर खड़े हुए हैं , प्रोग्राम की खास बात यह है कि दिए गए मिसरा तरह पर ग़ज़ल पढ़नी है , जिसकी ग़ज़ल नंबर एक पर आएगी उसे एक लाख रूपए का इनआम और संगीत कंपनी द्वारा दो साल का कॉन्ट्रैक्ट । एक ज़माना था जब मुशायरों में मंच पर शायर ही अपना लिखा कलाम पढता था , मगर आज कल तरन्नुम वालों का ज़ोर है , मंच पर असली शायर कम गाने वाले ज़्यादा दिखाई देते है , वह अच्छे शायरों से कलाम लिखवा कर पढ़ते हैं और दौलत , शोहरत हासिल करते हैं ।
मुशायरा शुरू हुआ ,एक से एक बेहतरीन ग़ज़लें शोरा और ग़ज़ल कारों द्वारा तहत और तरन्नुम में पेश की गयीं ------
संचालक ने जैसे ही जजों द्वारा दिए गए नतीजे का एलान किया , मंच पर मौजूद शोरा और ग़ज़लकार दंग रह गए मगर हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा , माइक पर अख्तर हुसैन अख्तर को आने की दावत दी गयी । अख्तर किसी बुज़ुर्ग को लेकर माइक पर आगया और शुक्रिया अदा करते हुए कहने लगा ,इस इनआम के असली हक़दार यह मेरे मोहतरम उस्ताद शकील साहिब हैं यह कभी मुशायरों की जान हुआ करते थे मगर अब परदे के पीछे रहते हैं और हम जैसे शागिर्द परदे पर दिखाई देते हैं ----- यह मंज़र देख कर शकील साहिब के होंटों पर फख्र और कामयाबी की मुस्कराहट और आँखों में ख़ुशी के आंसू साफ़ साफ़ कह रहे थे कि कौन कहता है वह परदे के पीछे हैं -----
(मौलिक व अप्रकाशित )
बहुत खूब कहा तस्दीक अहमद खान साहब. बधाई हो आप को .
मोहतरम जनाब ओम प्रकाश साहिब , लघु कथा आपको पसंद आयी मेरा लिखना सार्थक हुआ , बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
विषय पर आधारित सुंदर कहानी। नींव का पत्थर ज़मीन के नीचे रह कर आधार बनता है।
मोहतरम जनाब आशीष कुमार साहिब , लघु कथा आपको पसंद आयी मेरा लिखना सार्थक हुआ , बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , लघु कथा पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
असली हक़दार तो वही लोग हैं जो परदे के पीछे रहकर सब करते हैं| बढ़िया रचना विषय पर, बधाई आपको
मोहतरम जनाब विनय कुमार साहिब , लघु कथा पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
आ० तसदीक़ अहमद खान साहिब! कहा जाता है कि लघुकथा एक गरीब आदमी के बजट की तरह होती है, इसमें एक भी शब्द फालतू आ जाए तो इसका पूरा समीकरण ही गड़बड़ा जाता हैI इस बात की रौशनी में निम्नलिखित पंक्तियाँ न सिर्फ निहायत गैर जरूरी ही हैं, बल्कि भाषणनुमा भी हैं:
//एक ज़माना था जब मुशायरों में मंच पर शायर ही अपना लिखा कलाम पढता था , मगर आज कल तरन्नुम वालों का ज़ोर है , मंच पर असली शायर कम गाने वाले ज़्यादा दिखाई देते है , वह अच्छे शायरों से कलाम लिखवा कर पढ़ते हैं और दौलत , शोहरत हासिल करते हैं ।// (कुल 53 शब्द)
निम्नलिखित पंक्तिओं में सब कुछ लेखक ने ही ब्यान कर दिया, जबकि यह बात पात्र के संवाद के ज़रिए कही जानी चाहिए थी:
//अख्तर किसी बुज़ुर्ग को लेकर माइक पर आगया और शुक्रिया अदा करते हुए कहने लगा ,इस इनआम के असली हक़दार यह मेरे मोहतरम उस्ताद शकील साहिब हैं यह कभी मुशायरों की जान हुआ करते थे मगर अब परदे के पीछे रहते हैं और हम जैसे शागिर्द परदे पर दिखाई देते हैं//
बहरहाल इस सद्प्रयास हेतु मेरी दिली मुबारकबाद स्वीकार करें!
मोहतरम जनाब योग राज साहिब , लघु कथा पर ज्ञानवर्धक जानकारी देने और पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
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