आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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पर्दे के पीछे सासू माँ की मंशा अच्छी थी ये होने वाली बहु समझ गई ...कथा का मर्म सुन्दर है जिसके लिए आपको बधाई प्रेषित करती हूँ आदरणीया नीता जी .., ...
सौदा--
नयी नयी आयी बहू कुछ सोच नहीं पा रही थी, वैसे उसे शक़ तो हो गया था| खटका तो तब ही था जब उसके जैसी ख़राब सूरत की और इतने गरीब घर की लड़की के लिए इतने बड़े घर से रिश्ता आया था| उसकी माँ ने उसकी कितनी बलैया ली थी कि क्या किस्मत पायी है उसने और साथ ही साथ तमाम हिदायत भी कि कोई नाखुश ना रहे ससुराल में|
कल रात में भी सुमित अचानक बिस्तर से गायब हो गया| पहले भी कई बार ये हो चुका था लेकिन वो इंतज़ार करते करते सो जाती थी| अगले दिन सुमित कोई न कोई बहाना बना देता और ज्यादा पूछने पर नाराज़ हो जाता| काफी देर तक इंतज़ार करने के बाद भी जब वो नहीं आया तो उसने बाहर देखने का फैसला किया| लेकिन उसने जब सुमित को बड़ी बहू के कमरे से निकलते देखा तो वो स्तब्ध हो चुपके से वापस आ गयी थी|
पूरी रात इसी कशमकस में गुजरी कि वो क्या करे| लेकिन सुबह होते होते उसने स्थिति का सामना करने का फैसला कर लिया था| जैसे ही सुमित बाथरूम से निकला, उसने सीधा सवाल किया "कल रात में आप कहाँ गए थे"|
सुमित इस सवाल के लिए तैयार नहीं था, उसने अचकचा कर कहा "ऐसे ही बाहर निकला था, तुमको पहले भी कहा है कि ज्यादा पूछा मत करो"|
"मैंने देख लिया था कि आप कहाँ गए थे, और आज मैं बता देती हूँ कि आज के बाद ये सब नहीं चलेगा इस घर में", भावावेश में उसकी आवाज़ काफी तेज हो गयी|
सुमित घबराया लेकिन उसने भी काफी तल्ख़ लहज़े में जवाब दिया "ऐसी शक्ल सूरत और परिवार की होकर यहाँ ऊँची आवाज़ में बात करोगी? तुमको समझ नहीं आता कि तुम्हें क्यों इस घर की बहू बनाया गया है| आगे से चुप चाप पड़ी रहो और जैसे चल रहा है, चलने दो"|
"दो बात तुम भी सुन लो, अगर तुम सोचते हो कि मैं चुप रहूंगी तो तुम गलत हो| और दूसरी बात, अगर मैं इस घर से बाहर निकली तो ये बात घर के अंदर नहीं रह पायेगी"|
वो कमरे से बाहर निकल गयी, सुमित वहीँ बिस्तर पर धम्म से बैठ गया|
मौलिक एवम अप्रकाशित
आदरणीय विनय भाई जी लघुकथा में कालखंड है। सादर
ओह मुझे लगा कि मैंने पहला हिस्सा फ़्लैश बैक में लिखा है, शुक्रिया आ रवि भाई जी
परदे के पीछे क्या क्या चल रहा था सो एक दिन तो पर्दाफाश होना ही था अगर कालखंड दोष से अलग करके देखें तो लघु कथा शानदार हुई है बहुत बहुत बधाई आपको विनय भैया |
बहुत बहुत आभार आ राजेश कुमारी जी
मोहतरम विनय कुमार साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
बहुत बहुत आभार आ तस्दीक़ अहमद खान जी
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