आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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अच्छी रचना हुई है .. मन तक पहुँचने वाली ... अंत में निर्णयात्मक स्थिति है
बहुत बहुत बधाई आपको इस सुंदर कथा के लिए आदरणीया दी |
//अनचाहे पौधे अधखिले फूलों को निगल रहे हैं// बढ़िया कथा आदरणीया राजेश मैम, हार्दिक बधाई!
हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी। बहुत सुंदर संदेश देती हुई बेहतरीन प्रस्तुति।
असहजता
दरवाज़ा खोलते ही सोनल ने सामने पापा को देखा तो उनकी छाती से लग गई. पापा उसके इस नए फ्लैट में पहली बार आए थे. चाय नाश्ते के बाद वह उन्हें पूरा फ्लैट दिखाने लगी. फ्लैट दिखाते हुए वह बड़े उत्साह के साथ सभी चीज़ों का बखान कर रही थी . फ्लैट दिखा लेने के बाद उसने मेड को डिनर के लिए कुछ आदेश दिए फिर बैठ कर पापा के साथ बातें करने लगी. बातें करते हुए उसके पापा ने पूंछा "अभी तक दामाद जी घर नही आए."
"पापा बिज़नेस इतना बढ़ गया है कि कई बार ऑफिस में ही रुकना पड़ता है." सोनल ने सफाई दी.
उसके पापा ने आगे बढ़ कर उसके सर पर हाथ रख दिया. कुछ क्षणों तक पिता पुत्री खामोश रहे.
"अभी तुम्हारे पापा हैं." उसके पापा ने स्नेहपूर्वक कहा.
सोनल की आंखें नम हो गईं.
.
(मौलिक व अप्रकाशित)
टिपण्णी हेतु सादर धन्यवाद
वाह, वाह, बेहद कमाल की लघुकथा, बिना कुछ कहे सब कुछ कह दिया और बेहद खूबसूरती से| बहुत बहुत बधाई इस शानदार लघुकथा के लिए
टिपण्णी हेतु सादर धन्यवाद
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