आदरणीय साथिओ,
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इस तरह कई युवा अपना जीवन नष्ट कर लेते है. बधाई आप को .
मुहतरम जनाब आरिफ साहिब ,प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुन्दर लघुकथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
बढ़िया कथा हुई है आदरणीय मुहम्मद आरिफ साहब | बधाई स्वीकारें |
आदरणीय आरिफ़ जी, इस लघुकथा की प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. इस लघुकथा पर एक विचार मन में आया इसलिए साझा कर रहा हूँ-
सुबह-सुबह जिसने भी यह खबर सुनी सन्न रह गया। झकझोर के रख दिया इस ख़बर ने। हरिओम जी को अब तक ख़बर पल्ले नहीं पड़ी थी। पूछने के लिए, अपने बेटे को मोबाईल लगाने का प्रयास किया लेकिन उसने कॉल नहीं उठाया । तभी पाठक जी के घर की ओर जा रहे रमेशजी से पूछा -
‘‘ज़रा ठहरना रमेशजी, माजरा क्या है, जो सभी पाठक जी के घर की ओर जा रहे हैं?
‘‘अरे हरिओम भाई, आपको नहीं पता?’’
"नहीं, हुआ क्या है?"
‘‘अरे जब मैं मार्निंग वाक से आया तो बहू ने बताया कि पाठक जी का लड़का मनीष और उसका दोस्त सचिन नेशनल हाइवे पर नशे की हालत में तेज़ रफ़्तार बाइक चला रहे थे। रात के अंधेरे में भारी वाहन से टकराने से आॅन द स्पाॅट मारे गए। दोनों को नशे और तेज़ रफ़्तार की दीवानगी थी।’’
अब हरिओम जी भी सन्न रह गए और उनके कदम भी पाठक जी के घर की ओर बढ़ने लगे। लेकिन इस दौरान वें लगातार अपने बेटे को कॉल करने का प्रयास करते रहे।
जनाब मोहम्द आरिफ़ साहिब प्रस्तुत लघुकथा दिए गए विषय को तो सार्थक कर रही है, नशे की अँधेरी राहों के साथी का हश्र यही होना था। परन्तु ओवरआल यह लघुकथा कुछ कमजोर महसूस हो रही है। लघुकथा के माध्यम से दिया जाने वाला संदेश अक्सर बौद्धिक ना होकर भावनात्मक होता है। मनीष व सचिन की दुर्घटना में मौत को जिस सपाट तरीके से अभिव्यक्त किया गया है वह पाठकीय संवेदना को प्रभावित करने में कामयाब नहीं हाे पाया। लघुकथा का शीर्षक 'रफ़्तार की दीवानगी' लघुकथा में निहित संदेश 'अँधेरी राहों के साथी' से 'मैच' नहीं कर रहा। लघुकथा अभी और परिश्रम की मांग कर रही है। सादर
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