For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरे कानों में मुहब्बत फुसफुसाया कौन था (ग़ज़ल 'राज ')

2122  2122  2122  212

किसने  होंटों पे तबस्सुम को  सजाया कौन था

छुप के दिल में वस्ल का दीपक जलाया कौन था

 

साँसे मेरी जीस्त मेरी मेरा अपना था वजूद

धडकनों पे मेरी जिसने हक जमाया कौन था

 

जब कभी भीगी तख़य्युल में कहीं पलकें मेरी

शबनमी उन  झालरों से मुस्कुराया कौन था

 

गुफ्तगू के उस सलीके पर मेरा तन मन निसार

बातों बातों में मुझे अपना बनाया  कौन था

 

जब तेरी फ़ुर्कत में  भीगा था मेरा तकिया कभी  

सुब्ह को फिर धूप बन जिसने सुखाया कौन था

  

जब जमाने ने उगाये ख़ार मेरी राह  में

तोड़कर महताब कदमों में बिछाया कौन था

 

जी रही थी तल्खियों के साथ जब ये जिन्दगी

मेरे कानों में मुहब्बत फुसफुसाया  कौन था

----------मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 979

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 17, 2017 at 9:27pm

आद० बृजेश  कुमार बृज जी,आपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 17, 2017 at 9:26pm

मुह्तरम मोहम्मद आरिफ़ जी आपका तहे दिल से शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 17, 2017 at 9:25pm

आद० सुरेन्द्र नाथ भाई जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 17, 2017 at 9:24pm

आद० गिरिराज जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया आपका .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 17, 2017 at 8:02pm

आद० विजय निकोर जी ,आपकी इस प्रतिक्रिया ने मेरी ग़ज़ल को धन्य कर दिया इस होंसलाफ्जाई का तहे दिल से शुक्रिया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 17, 2017 at 8:01pm

आद० समर भाई जी ,आपकी हर इस्स्लाह का मैं दिल से स्वागत करती हूँ .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 17, 2017 at 7:59pm

आद० मिथिलेश भैय्या ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपकी समीक्षा से अभिभूत हूँ मेरा लिखना सार्थक हुआ इस ग़ज़ल को दो नशिस्त में कह चुकी हूँ बहुत अच्छा रेस्पोंस मिलता है .आपकी दाद पाकर बहुत उत्साहित हूँ दिल से बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 12, 2017 at 8:57pm
अनुपम...बहुत ही सुन्दर..ढेरों बधाइयाँ
Comment by Mohammed Arif on January 12, 2017 at 2:53pm
आदरणीया राजेश कुमारीजी आदाब , बहुत अच्छी ग़ज़ल । जनाब समर साहब ने सबकुछ कह दिया है । ढेरों मुबारकबाद !
Comment by नाथ सोनांचली on January 11, 2017 at 9:56pm
आदर0 बहन राजेश कुमारी जी उम्दा ग़ज़ल के लिए दाद हाजिर है, समर साहब के चर्चा से हमे भी बहुत कुछ सीखने को मिला, आपको कोटिश बधाइयाँ निवेदित हैं। सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
10 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service