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ग़ज़ल नूर की-- तेरी दुनिया में हम बेकार आये.

.
समझ पाये जो ख़ुद के पार आये,
तेरी दुनिया में हम बेकार आये.
.
बहन माँ बाप बीवी दोस्त बच्चे,
कहानी थी.... कई क़िरदार आये. 
.
क़दम रखते ही दीवारें उठी थीं,  
सफ़र में मरहले दुश्वार आये.
.
शिकस्ता दिल बिख़र जायेगा मेरा,
वहाँ से अब अगर इनकार आये.
.
उडाये थे कई क़ासिद कबूतर,   
मगर वापस फ़क़त दो चार आये.
.
समुन्दर की अनाएँ गर्क़ कर दूँ,
मेरे हाथों में गर पतवार आये.
.
अगरचे लोग वो सस्ते नहीं थे,
जो बिकने को सर-ए-बाज़ार आये.
.
तेरी यादों से छुट्टी कब मिलेगी,
कभी तो ज़ह’न को इतवार आये. 
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 1506

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 27, 2017 at 8:44pm

आ. समर सर ..
अहमद फ़राज़ साहब की एक नज़्म का उन्वान है क़ासिद कबूतर ..
नज़्म उर्दू fonts में मिल पायी है ..
देखिएगा 
.

یہ لہوجِس سے میرے
شہروں کے سارے راستے
گُلکوں ہیں
اور ہر پیرہن کا رنگ حُنّابی ہے
کل کے موسموں
اور آنے والے
سُورجوں
کا زمزمہ گر ہے
چلو تُم نے تو 
کالی سُرخیاں
مقراض کر ڈالیں
سُخن نخچیر کر ڈالے
قلم زنجیر کر ڈالے
مگر اب اِن ہواؤں کو بھی روکو
جو تُمھارے مقتلوں کی لالیاں
اور تازہ خُوں کی خُوشبوئیں
اور اُن کی آوازیں لئے
گلیوں سے
بازاروں سے
شہراہوں سے
ہر طرف
قریہ بہ قریہ
پھیلتی جاتی ہیں
نادانو
ہوائیں نامہ بر بنتی ہیں
جب قاصد کبُوتر قید ہوتے ہیں
.
इसके अंग्रेजी fonts हैं....
.
Ye Lahoo Jiss Say Mere
Shehro'n Kay Saaray Raastay
Gulkoo'n Hai'n
Aur Hr Pairahan Ka Rang Hun'naabi Hai
Kal Kay Mausmo'n
Aur Aanay Waalay
SoorJo'n
Ka Zamzama Gr Hai
Chalo Tum Nay To
Kaali SurKhiyaa'n
Maqraaz Kr Daalee'n
SuKhan NaKhcheer Kr Daalay
Qalam ZanJeer Kr Daalay
Magar Ab In Hawaao'n Ko Bhi RoKo
Jo Tumhaaray Maqtalo'n Ki Laaliyaa'n
Aur Taaza Khoo'n Ki Khushbuye'n
Aur Un Ki Aawaaze'n Liye
Galyo'n Say
Bazaaro'n Say
Shehro'n Say
Hr Taraf
Qarya Ba Qarya
Phailti Jaati Hai
Naadaano
Hawaaye'n Naama'Br Banti Hai'n
Jb Qasid Kabootar Qaid Hotay Hai'n..!!
.
सादर 


Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 27, 2017 at 8:17pm

शुक्रिया आ. रवि जी ..
मैं भी इस प्रक्रिया से लाभान्वित होता रहता हूँ ... स्नेह बनाए रखिये 
सादर 

Comment by Ravi Shukla on March 27, 2017 at 7:56pm
आदरणीय नीलेश जी बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दाद और मुबारक बाद हाज़िर है । आप इसी तरह अशआर कहते रहिये और इसी तरह हमारी ग़ज़लों की प्यास बढ़ती रहे और उस पार समर साहब जैसे उस्ताद की जरूरी टिप्पणियों से हमारी मालूमात में इज़ाफ़ा होता रहे।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 27, 2017 at 6:45pm

धन्यवाद आ. समर सर ...
मैं आप की बात समझ गया ... यानी कबूतर की मोडस ऑपरेंडी समझ गया हूँ...
क़ासिद और नामा-बर का मतलब लुगत में एक ही बताया गया था इसलिए मैंने इसे इस्तेमाल कर लिया.. बस फ़र्क इतना था कि क़ासिद अरबी मूल का शब्द है और नाम:बर फ़ारसी ...
मैं शेर फिर कहने की कोशिश करता हूँ ..
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 27, 2017 at 6:42pm

धन्यवाद आ. अनुराग जी...
एक व्यक्ति में कई अहँकार होते हैं ..धन का अहंकार, रूप का अहंकार, ज्ञान का अहंकार, शक्ति का अहंकार अत: मुझे अनाएँ लिखने में कोई दिक्कत मालूम नहीं होती.
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 27, 2017 at 6:40pm

धन्यवाद आ. सरना जी 

Comment by Samar kabeer on March 27, 2017 at 4:00pm
जनाब निलेश'नूर'साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'अगरचे लोग वो सस्ते नहीं थे
जो बिकने को सर-ए-बाजार आये'
ये शैर कुछ ज़ियादा ही पसन्द आया ।

'उड़ाये थे कई क़ासिद कबूतर
मगर वापस फ़क़त दो चार आये'
इस शैर पर कुछ कहना चाहूंगा,अव्वल तो ये कि उर्दू शाइरी में 'नामाबर कबूतर'की इस्तिलाह् आम है,इन्हें 'क़ासिद कबूतर'नहीं कहते,दूसरी अहम बात ये कि 'नामाबर'कबूतर'वापस नहीं आते हैं,होता ये था कि आपके पाले हुए कबूतर मेरे पास होंगे और नेरे पाले हुए कबूतर आपके पास,कबूतरों की ये ख़ूबी है कि वो जहाँ पलते हैं उस जगह को नहीं भूलते और कई अर्से बाद भी जब उन्हें उड़ने का मौक़ा मिलता है वो अपने पालने वाले के यहाँ पहुंच जाते हैं,कबूतरों की इसी फ़ितरत के मद्दे नज़र उन्हें पैग़ाम रसानी के लिये इस्तेमाल किया जाता था । उम्मीद है आप मेरी बात का अर्थ समझ गये होंगे,बाक़ी शुभ शुभ ।
Comment by Sushil Sarna on March 27, 2017 at 3:50pm

अगरचे लोग वो सस्ते नहीं थे,
जो बिकने को सर-ए-बाज़ार आये.
.
तेरी यादों से छुट्टी कब मिलेगी,
कभी तो ज़ह’न को इतवार आये.

वाह शानदार अशआर वाली इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 27, 2017 at 2:24pm

शुक्रिया आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 27, 2017 at 2:24pm

शुक्रिया आ. सीमा जी 

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