आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय आपकी कहानी में नाटकीय पक्ष असाधारण है , भूरि -भूरि बधाई . यह पूर्णतः मौलिक क्या बला है ?
इस शानदार लघु कथा के लिए बधाई। सांकेतिक भाषा का प्रयोगकर ,सही उपमा दी है आपने। ” ये सारे विभाग आपके कुर्ते की जेब में ही तो होते थे। "
बहुत बढ़िया, हास्य का पुट लिये तीखे कटाक्ष वाली लघुकथा । सहभागिता की बधाई
वाह गजब, इशारों ही इशारों में बहुत कुछ कह दिया| नेता जी का कुर्ता चुरा लेना - कुर्सी छीन लेना ही तो है उसके बाद ना तो वर्दीधारी संतरी और ना ही कुछ और| रचना की बहुत बढ़िया शुरुआत और बेहतरीन पंच से अंत| सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीय प्रदीप नील जी|
परमेश्वर
मेन गेट खोलने के लिए मोहन जी के बढ़े हाथ अचानक ही ठिठक गए । घर से आती खिलखिलाहट की आवाज पर उनका चेहरा यूं विकृत हो उठा जैसे कानो मे तेजाब डल गया हो । अंदर आकर लोहे के गेट को इतनी जोर से बंद किया कि उसकी आवाज , घर के सहज वातावरण को चीरती निःस्तब्ध खामोशी फैला गयी ।
तभी दरवाजा खुला ... वसुधा के पीछे दोनों बच्चे प्रकट हुए । मोहन जी को सहमी नजरों से देखते दोनों , बाय कह बाहर निकल गये ।
घर मे भुनभुनाते हुए घुसते मोहन जी की अस्पष्ट आवाज और समानों की उठा पटक को नजरंदाज कर वसुधा ने चाय का पानी गैस पर रख दिया । पानी मे चायपत्ती डालते ही सफेद झक पानी कसैला सा होने लगा ....एकटक उसे उबलता देख वसुधा का मन भी यादो की खलबलाहट से भर उठा ....
पानी जैसी ही तो थी वो भी...निश्छल और सहज ...शादी के बाद उसकी हर इच्छा और काबिलियत पर मोहन जी पति कम परमेश्वर बन उसे दबाते कुंठित करते चले गये । बच्चों के साथ भी पिता से अधिक घर के मालिक होने का दंभ । माहौल कसैला होता देख वो अब यदा - कदा विरोध करने लगी ... अधिकतर तीनों उनकी उपस्थिति मे तटस्थ ही रहते ।
" आज बीरबल की चाय बन जाएगी ? " कर्कश आवाज ने उसे यादो से बाहर खींच लिया । चौंक कर उसने उबल कर काली पड़ गयी चाय मे शक्कर और दूध मिलाया , तुरंत ही चाय का रंग निखर गया, जिसे देख बरबस ही वो मुस्करा उठी।
तभी पीछे से आकर तेज आवाज मे चिल्लाते मोहन जी बरस पड़े " मै क्या परग्रही हूँ या पागल ? मुझे देखते ही तुम तीनों को साँप सूंघ जाता है ...मुझे जानबूझकर नीचा दिखाते हो ? सब समझता हूँ मै ! "
" काश आप समझते ...खैर ! ऐसा कुछ नहीं ...वैसे भी परमेश्वर और मालिक के साथ सहजता और बराबरी ..? " मोहन जी की आँखों मे झांकती वसुधा ने कहा , जहाँ अकेलेपन और नकारे जाने का दंश साफ उभर आया था ।
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